क्या बदल रहा है?
पिछले कुछ वर्षों में भारत सरकार ने घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए BIS (Bureau of Indian Standards) के तहत क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर (QCO) को अनिवार्य बना दिया है। इसका सीधा असर यह हुआ है कि विदेशी कंपनियों के लिए भारतीय बाजार में बने रहना मुश्किल होता जा रहा है जब तक कि वे भारतीय गुणवत्ता मानकों पर खरा न उतरें। इस नीति के कारण कई मल्टीनेशनल कंपनियों और भारतीय मैन्युफैक्चरिंग दिग्गजों ने अब भारत में ही उत्पादन इकाइयाँ लगाने की शुरुआत कर दी है।
छोटे बाज़ार, बड़े अवसर
यह मान्यता लंबे समय से बनी रही कि भारत में कई छोटे-छोटे इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का बाजार इतना छोटा है कि स्थानीय उत्पादन फायदेमंद नहीं होगा। लेकिन डिक्सन टेक्नोलॉजीज, PG Electroplast, और Epack Durable जैसी कंपनियों ने इस सोच को चुनौती दी है।
डिक्सन टेक्नोलॉजीज ने यूरेका फोर्ब्स के साथ रोबोट वैक्यूम क्लीनर बनाने का समझौता किया है, भले ही इस कैटेगरी का बाजार फिलहाल सिर्फ ₹700 करोड़ का है। वहीं, Liebherr जैसी जर्मन कंपनी ने औरंगाबाद में बिल्ट-इन रेफ्रिजरेटर बनाने का प्लांट लगाया है, जबकि उनकी सालाना बिक्री अभी केवल 15,000 यूनिट्स के आसपास है। इन निवेशों से यह स्पष्ट होता है कि कंपनियाँ आने वाले वर्षों में बाजार के विस्तार की उम्मीद कर रही हैं।
QCO ने बदली दिशा
BIS के QCO लागू होने के बाद कंपनियों के पास दो ही विकल्प बचे हैं — या तो भारत में उत्पादन शुरू करें, या फिर भारतीय बाजार को छोड़ें। चूंकि BIS सर्टिफिकेशन पाना विदेशी प्लांट्स के लिए जटिल प्रक्रिया है, इसलिए घरेलू उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है। Crompton Greaves और Havells जैसी घरेलू कंपनियाँ भी अब आयात पर निर्भरता घटाकर स्थानीय मैन्युफैक्चरिंग पर जोर दे रही हैं। Havells ने पिछले वर्ष तक 15% प्रोडक्ट्स आयात किए थे, जिसे अब घटाकर 8% कर दिया गया है।
नए प्रोडक्ट्स, नई संभावनाएँ
72 नई कैटेगरीज जैसे एयर फ्रायर, हेयर ड्रायर, इलेक्ट्रिक केतली आदि को अब घरेलू उत्पादन में लाने की कोशिश की जा रही है। इन सबका संयुक्त बाजार लगभग ₹12,000-13,000 करोड़ का आँका जा रहा है। भले ही व्यक्तिगत कैटेगरी छोटी हों, लेकिन समग्र रूप में ये एक विशाल अवसर बन चुकी हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जैसे-जैसे BIS नियम सख्त होंगे, विदेशी कंपनियों के लिए बाजार में बने रहना और चुनौतीपूर्ण होगा, और इससे भारत के निर्माण क्षेत्र को बड़ा प्रोत्साहन मिलेगा।
'मेक इन इंडिया' का असली स्वरूप
यह बदलाव सिर्फ उत्पादन का नहीं है; यह भारत की आत्मनिर्भरता (Self-Reliance) की ओर एक ठोस कदम है। "मेक इन इंडिया" अब केवल एक नारा नहीं, बल्कि जमीनी हकीकत बन चुका है। छोटे इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की श्रेणियाँ, जो अब तक कभी विदेशी कंपनियों की मोनोपॉली रही थीं, अब भारतीय कंपनियों की उत्पादन सूची में शामिल हो रही हैं। यह बदलाव सिर्फ घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा नहीं देता, बल्कि रोजगार, तकनीकी कौशल और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए भारत को तैयार भी करता है।
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