दुनिया में 1 नहीं अब 4 सुपरपावर! जानकार चौंक जाएंगे

नई दिल्ली। 21वीं सदी के तीसरे दशक में दुनिया के शक्ति संतुलन का नक्शा तेजी से बदल रहा है। जहां कभी अमेरिका और सोवियत संघ (अब रूस) के बीच दोध्रुवीय सत्ता की लड़ाई थी, वहीं अब वैश्विक मंच पर चार महाशक्तियाँ उभर चुकी हैं — अमेरिका, रूस, चीन और भारत। यह बदलाव सिर्फ सैन्य ताकत का नहीं, बल्कि आर्थिक दबदबे, तकनीकी नेतृत्व और वैश्विक कूटनीति में प्रभाव का भी प्रतीक है।

अमेरिका: अब भी सबसे आगे, लेकिन दबाव में

अमेरिका आज भी दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सैन्य शक्ति है। नाटो का नेतृत्व, डॉलर की वैश्विक पकड़, तकनीकी नवाचार और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में गहरी जड़ें — ये सभी अमेरिका को एक निर्णायक महाशक्ति बनाते हैं। लेकिन चीन के आर्थिक विस्तार और रूस की आक्रामक विदेश नीति के चलते अमेरिका अब अकेला नहीं है।

रूस: ऊर्जा और रणनीतिक चतुराई का ध्रुव

यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद रूस ने वैश्विक प्रभाव को बनाए रखा है। यूरोप की ऊर्जा निर्भरता, ब्रिक्स में सक्रिय भूमिका और अफ्रीका व एशिया में रणनीतिक पहुंच ने रूस को एक महाशक्ति के रूप में स्थापित किया है। मास्को की विदेश नीति आक्रामक जरूर है, पर उसका प्रभाव बढ़ रहा है। खासकर रूस आज भी दुनिया की सबसे बड़ी परमाणु ताकत हैं।

चीन: आर्थिक ताक़त से सैन्य प्रभुत्व की ओर

चीन पिछले दो दशकों में 'फैक्ट्री ऑफ द वर्ल्ड' से 'पावर हब ऑफ द वर्ल्ड' बन चुका है। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI), एआई टेक्नोलॉजी में निवेश और साउथ चाइना सी में सैन्य विस्तार से बीजिंग ने अमेरिका के लिए चुनौती खड़ी कर दी है। उसका उद्देश्य साफ है — 2049 तक वैश्विक नेतृत्व हासिल करना हैं।

भारत: उभरती नहीं, अब स्थापित महाशक्ति

भारत अब केवल "उभरती" शक्ति नहीं रहा, बल्कि स्थापित वैश्विक ध्रुव बन चुका है। दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, मजबूत लोकतंत्र, उच्च तकनीकी क्षमताएं और वैश्विक मंचों पर सक्रिय नेतृत्व (जैसे G20 की अध्यक्षता) ने भारत को विश्व पटल पर एक स्थायी स्थान दिलाया है। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता, चंद्रयान-3 की सफलता, और इंडो-पैसिफिक रणनीति में भूमिका ने भारत को चौथे महाशक्ति के रूप में मजबूती दी है।

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