1. अमेरिका: HELIOS और ATHENA से लेजर वॉर की अगुवाई
अमेरिका लंबे समय से लेजर हथियारों पर काम कर रहा है और अब HELIOS (High Energy Laser with Integrated Optical-dazzler and Surveillance) तथा ATHENA जैसे सिस्टम तैयार कर चुका है। HELIOS सिस्टम 60 किलोवाट की शक्ति के साथ ड्रोन और मिसाइलों को 8 किमी की दूरी से मार गिराने में सक्षम है। अमेरिकी नौसेना अपने युद्धपोतों पर इन सिस्टम्स को तैनात कर रही है।
2. चीन: हवाई खतरों पर केंद्रित, एशिया में तैनाती की तैयारी
चीन ने भी लो-लेवल लेजर सिस्टम विकसित किए हैं जो छोटे ड्रोन और हवाई खतरों को टारगेट करने में सक्षम हैं। चीन का मुख्य फोकस क्षेत्रीय सुरक्षा है और वह इन हथियारों को एशिया के सामरिक क्षेत्रों में तैनात करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
3. रूस: ‘पेरिसवेट’ लेजर से अंतरिक्ष तक पकड़
रूस का प्रमुख लेजर प्रोजेक्ट Peresvet है, जो एक हाई-एनर्जी ग्राउंड-बेस्ड सिस्टम है। यह न केवल ड्रोन को नष्ट कर सकता है, बल्कि दुश्मन के सैटेलाइट्स को भी अंधा करने में सक्षम बताया जा रहा है। इससे रूस की एंटी-सैटेलाइट क्षमता में जबरदस्त इजाफा हुआ है।
4. इजरायल: 'आयरन बीम' से बढ़ी ताकत
इजरायल, जो पहले ही अपनी आयरन डोम प्रणाली से प्रसिद्ध है, अब Iron Beam नामक लेजर रक्षा प्रणाली विकसित कर रहा है। यह सिस्टम 7 किमी तक की दूरी पर रॉकेट और ड्रोन को नष्ट करने में सक्षम होगा और 2025 तक पूरी तरह ऑपरेशनल होने की संभावना है।
5. भारत: Mk-II और सूर्या के साथ तेजी से आगे
भारत भी इस लेजर रेस में पीछे नहीं है। DRDO द्वारा विकसित 30 किलोवाट का Mk-II(A) Directed Energy Weapon सिस्टम और प्रस्तावित 300 किलोवाट का ‘सूर्या’ प्रोजेक्ट भारत की तकनीकी प्रगति को दर्शाते हैं। हाल ही में इन हथियारों के सफल परीक्षण किए गए हैं, जिनमें ड्रोन और मिसाइलों को 20 किमी की दूरी से टारगेट किया गया।
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