क्या है स्वास्तिक का महत्व?
'स्वास्तिक' शब्द संस्कृत के “सु” (अर्थात शुभ) और “अस्ति” (अर्थात हो) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है, "शुभ हो।" यह चिन्ह सनातन संस्कृति में समृद्धि, शुभता, सौभाग्य और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है। वास्तुशास्त्र और ज्योतिष के अनुसार, स्वास्तिक चिन्ह नकारात्मक शक्तियों को दूर करता है और घर में सुख-शांति बनाए रखता है।
क्यों जरूरी है मुख्य द्वार पर स्वास्तिक?
मुख्य द्वार को घर की ऊर्जा का प्रवेशद्वार माना जाता है। यही वह स्थान है जहाँ से शुभ-अशुभ ऊर्जा का प्रवेश होता है। नवरात्रि जैसे पवित्र समय में जब देवी शक्ति का आगमन होता है, तो मुख्य द्वार पर स्वास्तिक बनाना देवी को आमंत्रित करने जैसा माना जाता है। इससे घर में न केवल देवी की कृपा बनी रहती है, बल्कि यह चिन्ह बुरी नजर, दरिद्रता और विघ्न-बाधाओं से भी रक्षा करता है।
कैसे बनाएं स्वास्तिक?
नवरात्रि के पहले दिन, सूर्योदय के समय घर की सफाई के बाद मुख्य द्वार पर गेरू, हल्दी, चावल का आटा या कुमकुम से स्वास्तिक बनाया जा सकता है। स्वास्तिक के चारों सिरों पर बिंदु या छोटे-छोटे दीपक बनाकर इसे और भी शुभ बनाया जा सकता है। साथ ही, “ॐ” या “शुभ लाभ” जैसे शब्द भी अंकित किए जा सकते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार
पुराणों और शास्त्रों में भी स्वास्तिक को मांगलिक प्रतीक माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि जहां स्वास्तिक होता है, वहां लक्ष्मीजी का स्थायी वास होता है। नवरात्रि के दौरान यह चिन्ह मां दुर्गा को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का सशक्त माध्यम बन जाता है।
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