चीन का युद्धपोत निर्माण: एक अभूतपूर्व रफ्तार
चीन ने शिपयार्डों को अत्याधुनिक तकनीक और विशाल संसाधनों से लैस करके युद्धपोत निर्माण की अपनी क्षमता को कई गुना बढ़ा दिया है। डालियान, जियांगनान, ग्वांगझोउ जैसे प्रमुख शिपयार्डों से हर साल बड़ी संख्या में जहाज निकले हैं। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार चीन के पास 234 युद्धपोत हैं, जबकि अमेरिकी नौसेना के पास जहाजों की संख्या सिर्फ 219 है।
बीजिंग का लक्ष्य दक्षिण चीन सागर और उससे आगे के समुद्री क्षेत्र में अपना दबदबा कायम करना है, जिससे वह क्षेत्रीय और वैश्विक दोनों स्तरों पर समुद्री प्रभुत्व स्थापित कर सके। वर्ष 2025 तक चीन को युद्धपोत निर्माण के लगभग 60 प्रतिशत ऑर्डर मिलने का अनुमान है, जो इसे विश्व स्तर पर सबसे बड़ा जहाज निर्माता बनाता है।
अमेरिका के लिए चुनौती: तकनीक में श्रेष्ठता
हालांकि, अमेरिकी नौसेना तकनीकी रूप से अभी भी चीन से कई कदम आगे है। अमेरिका के पास 11 एयरक्राफ्ट कैरियर्स और अत्याधुनिक हथियार हैं जो उसकी शक्ति का प्रमाण हैं। लेकिन जहाज निर्माण की धीमी गति और उत्पादन क्षमता की सीमाओं ने अमेरिका को चीन के विस्तार के आगे कमजोर कर दिया है। अमेरिकी प्रशासन भी इस कमी को महसूस कर रहा है और इसे सुधारने के लिए नए कार्यकारी आदेश और योजनाएं बना रहा है।
भारत और क्षेत्रीय सुरक्षा: बढ़ता खतरा
चीन के समुद्री विस्तार का सबसे बड़ा खतरा दक्षिण और पूर्व एशियाई देशों के लिए है। खासतौर पर ताइवान, जापान, फिलीपींस और भारत के लिए यह चिंता का विषय है। ताइवान को चीन का मुख्य निशाना माना जा रहा है, जहां अमेरिका की सुरक्षा गारंटी के बावजूद स्थानीय तैयारी और सहयोगी देशों की मदद पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
भारत भी चीन के बढ़ते दबदबे से प्रभावित हो रहा है। फिलीपींस ने भारत से ब्रह्मोस मिसाइल खरीदी है, जो चीन के प्रभाव को रोकने की कोशिशों का हिस्सा है। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि अकेले भारत या किसी एक देश के लिए चीन को रोकना बेहद मुश्किल होगा। इसके लिए क्षेत्रीय सहयोग और रणनीतिक साझेदारी का निर्माण जरूरी है। चीन से निपटने के लिए अमेरिका, भारत और अन्य क्षेत्रीय देश रणनीतिक सहयोग, नौसैनिक तकनीक और उत्पादन क्षमता को बढ़ाने पर ध्यान देंगे।
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