ग्लोबल पॉवर के रूप में उभर रहा है भारत: चीन को चिंता

नई दिल्ली। 21वीं सदी को यदि "एशिया की सदी" कहा जा रहा है, तो इसका सबसे बड़ा कारण भारत और चीन की बढ़ती वैश्विक भूमिका है। परंतु जहां एक ओर चीन अपनी आक्रामक नीति और विस्तारवादी दृष्टिकोण के चलते विश्व में संशय और विरोध का सामना कर रहा है, वहीं भारत एक लोकतांत्रिक, स्थिर और विश्वसनीय शक्ति के रूप में तेजी से उभर रहा है। भारत की यह चढ़ान केवल आर्थिक या सैन्य ताकत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह रणनीतिक, तकनीकी और कूटनीतिक प्रभाव में भी झलक रही है। यही भारत का उभार अब चीन के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है।

आर्थिक विकास और तकनीकी प्रगति

भारत अब विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और आने वाले वर्षों में तीसरे स्थान पर पहुँचने की संभावना है। भारत की डिजिटल क्रांति, स्टार्टअप संस्कृति और विनिर्माण (मेक इन इंडिया) पर ज़ोर ने उसे वैश्विक निवेशकों का पसंदीदा गंतव्य बना दिया है। UPI जैसी तकनीकी पहलियों ने भारत को फिनटेक नवाचार में अग्रणी बना दिया है। चीन, जिसने लंबे समय तक तकनीकी और विनिर्माण में एकाधिकार बनाया था, अब भारत के इस तेज़ी से बढ़ते प्रभाव को लेकर सतर्क हो गया है।

कूटनीतिक सक्रियता और वैश्विक गठबंधन

भारत की विदेश नीति अब "गुटनिरपेक्षता" से आगे निकलकर "मल्टी-अलाइनमेंट" की ओर बढ़ चुकी है। भारत क्वाड (QUAD), ब्रिक्स, SCO, G20 और अन्य बहुपक्षीय मंचों पर एक अहम भूमिका निभा रहा है। विशेषकर G20 की अध्यक्षता के दौरान भारत ने विकासशील देशों की आवाज़ को प्रमुखता दी और ग्लोबल साउथ के लिए एक सशक्त प्रतिनिधि बनकर उभरा।

भारत-अमेरिका, भारत-फ्रांस, भारत-जापान, भारत-अफ्रीका जैसे रणनीतिक साझेदारी के विस्तार ने चीन की कूटनीतिक चालों को पीछे छोड़ दिया है। चीन के लिए यह चिंता का विषय है कि भारत अब उसकी तुलना में एक ज़्यादा भरोसेमंद सहयोगी और लोकतांत्रिक विकल्प बन रहा है।

रक्षा शक्ति और रणनीतिक स्थिति

भारत अब रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। "आत्मनिर्भर भारत" के अंतर्गत रक्षा उत्पादन और निर्यात में भारी वृद्धि हुई है। इसके अलावा भारत की नौसेना की बढ़ती ताकत और हिंद महासागर में उसकी उपस्थिति, चीन के "बेल्ट एंड रोड" और "स्टिंग ऑफ पर्ल्स" रणनीति को चुनौती दे रही है।

चीन की प्रतिक्रिया

चीन भारत के इस उदय को लेकर न सिर्फ चिंतित है, बल्कि कई बार उसके आक्रामक रुख से यह चिंता स्पष्ट रूप से झलकती है—चाहे वह सीमा विवाद हो, वैश्विक मंचों पर भारत का विरोध, या तकनीकी कंपनियों पर दबाव। लेकिन अब विश्व तेजी से भारत को एक ज़िम्मेदार और संतुलित शक्ति के रूप में देख रहा है।

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