बता दें की इस योजना के अंतर्गत 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के आर्थिक रूप से कमजोर बुजुर्गों को प्रतिमाह ₹1,000 की आर्थिक सहायता सीधे उनके आधार-लिंक्ड बैंक खातों में भेजी जाती है। इससे उन्हें अपने बुढ़ापे में वित्तीय कठिनाइयों से राहत मिलती है और वे कुछ हद तक आत्मनिर्भर भी बन पाते हैं।
सरकार की प्रतिबद्धता और पारदर्शिता
यह योजना सिर्फ आर्थिक सहायता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सरकार की वृद्धजनों के प्रति सामाजिक जिम्मेदारी और संवेदनशीलता का भी प्रतीक है। पेंशन वितरण की प्रक्रिया को पारदर्शी और तेज़ बनाने के लिए "सिंगल नोडल एकाउंट" प्रणाली को अपनाया गया है। इस प्रणाली के ज़रिए बिना किसी बिचौलिये के पेंशन की राशि सीधे लाभार्थियों के खातों में ट्रांसफर होती है। इससे न सिर्फ भ्रष्टाचार पर रोक लगी है, बल्कि हर लेन-देन का लेखा-जोखा भी सुनिश्चित हुआ है।
वृद्धजनों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी
2017 में जब योगी सरकार ने इस योजना का विस्तार किया, तब लाभार्थियों की संख्या 37.47 लाख थी। लेकिन बीते वर्षों में विकासखंड और ग्राम पंचायत स्तर पर सक्रिय सर्वेक्षण के माध्यम से पात्र वृद्धजनों की पहचान की गई, जिससे यह संख्या अब 67.50 लाख तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। यदि निर्धारित लक्ष्य से अधिक पात्र व्यक्ति मिलते हैं, तो उन्हें भी योजना में शामिल किया जा रहा है।
सामाजिक सुरक्षा की दिशा में मजबूत कदम
यह योजना सिर्फ एक सरकारी स्कीम नहीं, बल्कि वृद्धजनों के लिए सामाजिक सुरक्षा का मजबूत स्तंभ बन चुकी है। खासतौर पर ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों के बुजुर्गों के लिए यह पेंशन जीवन की जरूरतों को पूरा करने में सहायक बन रही है।
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