क्यों जरूरी था यह बदलाव?
गांवों में भूमि के स्वामित्व, उत्तराधिकार और जमाबंदी से संबंधित मामलों में अक्सर यह देखा गया है कि रैयत (कृषक) या ज़माबंदीदार की मृत्यु बहुत पहले हो चुकी होती है, लेकिन मृत्यु प्रमाण पत्र के अभाव में उनके उत्तराधिकारी ज़मीन या संपत्ति के दस्तावेज़ों को अपडेट नहीं कर पाते। इससे न केवल राजस्व संबंधी कामकाज प्रभावित होता है, बल्कि परिवारों को भी कानूनी और प्रशासनिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
क्या है नई व्यवस्था?
राजस्व विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह द्वारा सभी जिलाधिकारियों को भेजे गए निर्देश के अनुसार राजस्व महाअभियान के तहत अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु के प्रमाण पत्र नहीं हैं, तो उसके उत्तराधिकारी एक स्व-घोषणा पत्र दे सकते हैं। यह घोषणा सफेद कागज पर लिखी जाएगी और पंचायत के मुखिया या सरपंच के हस्ताक्षर और प्रमाणन से वैध मानी जाएगी। इसके अतिरिक्त, यदि वंशावली में किसी सदस्य के नाम के साथ 'मृत' लिखा है, तो उसे भी प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जाएगा।
इससे पहले की स्थिति
पूर्व में, एक वर्ष से अधिक पुराने जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने की प्रक्रिया काफी जटिल थी। इसके लिए अनुमंडल पदाधिकारी (एसडीएम) की अनुशंसा आवश्यक होती थी। लेकिन विधानसभा चुनावों के दौरान एसडीएम को निर्वाचन से जुड़े कार्यों में व्यस्त रहने के कारण हजारों आवेदन लंबित हो गए। जुलाई 2025 तक प्रदेश के विभिन्न एसडीएम कार्यालयों में 10,000 से अधिक आवेदन अटके हुए थे।
नई जिम्मेदारी: बीडीओ और कार्यपालक पदाधिकारी को
अब एक साल से अधिक पुराने मामलों में ग्रामीण क्षेत्रों में यह अधिकार प्रखंड विकास पदाधिकारी (बीडीओ) को दिया गया है। शहरी क्षेत्रों में यह जिम्मेदारी नगर निकायों के कार्यपालक पदाधिकारियों को सौंपी गई है। वहीं, 30 दिन से एक साल तक के आवेदन अब प्रखंड सांख्यिकी पदाधिकारी की अनुशंसा से बनाए जाएंगे। एक माह के अंदर हुए जन्म या मृत्यु को पंचायत सचिव प्रमाणित करेंगे।
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