राष्ट्रीय सुरक्षा पहली प्राथमिकता
अमेरिका ने F-22 रैप्टर को शीत युद्ध के अंतिम चरण में सोवियत संघ के अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों का मुकाबला करने के लिए डिजाइन किया था। यह फाइटर जेट इतनी उन्नत तकनीक से लैस है कि अमेरिका इसे अपनी "रणनीतिक बढ़त" मानता है। विशेषज्ञों के अनुसार, अगर यह विमान अन्य देशों को बेच दिया गया, तो इसकी तकनीक लीक होने की आशंका बढ़ जाती है, जो अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती है।
अमेरिकी कांग्रेस द्वारा निर्यात पर प्रतिबंध
साल 1998 में अमेरिकी कांग्रेस ने एक कड़ा निर्णय लेते हुए F-22 की बिक्री पर कानूनी रोक लगा दी। इस कानून के अनुसार, F-22 रैप्टर किसी भी मित्र राष्ट्र को भी निर्यात नहीं किया जा सकता, चाहे वो नाटो सदस्य ही क्यों न हो। यह फैसला मुख्यतः टेक्नोलॉजी की रक्षा और अमेरिका की वायु श्रेष्ठता को बनाए रखने के लिए लिया गया।
सहयोगी देशों की रुचि, फिर भी इनकार
कई मित्र देशों ने अमेरिका से इस फाइटर जेट को खरीदने की रुचि दिखाई है। जापान, ऑस्ट्रेलिया और इज़राइल जैसे देशों ने आधिकारिक अनुरोध भी किए, लेकिन सभी को इनकार मिला। अमेरिका की चिंता सिर्फ तकनीक की चोरी नहीं, बल्कि भविष्य में किसी भी तरह की "पलटी" रणनीति से बचना भी है।
उत्पादन बंद, अब सिर्फ F-35 पर फोकस
2011 में अमेरिका ने F-22 का उत्पादन पूरी तरह बंद कर दिया। इसकी जगह अब वह F-35 लाइटनिंग II पर ज़ोर दे रहा है, जिसे वो कई देशों को निर्यात कर रहा है। F-35 बहु-भूमिका निभाने वाला जेट है, लेकिन सैन्य विश्लेषकों के अनुसार, F-22 अब भी डॉगफाइट (हवा में आमने-सामने की लड़ाई) के लिए दुनिया का सबसे खतरनाक फाइटर माना जाता है।
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