रूस-चीन-भारत की नई चाल: क्या डॉलर खतरे में?

नई दिल्ली। दुनिया की आर्थिक तस्वीर अब तेजी से बदल रही है। अमेरिका लंबे समय से वैश्विक व्यापार में डॉलर के जरिए दबदबा बनाए हुए है, लेकिन अब तीन बड़े एशियाई देश रूस, चीन और भारत इस वर्चस्व को चुनौती देने की स्थिति में नजर आ रहे हैं। हाल ही में अमेरिका की नीतियों में भारत को लेकर जो सख्ती दिखाई दी है, उससे यह सवाल और भी तीखा हो गया है: क्या यह तीनों देश मिलकर डॉलर की बादशाहत को खत्म कर सकते हैं?

ट्रंप की टैरिफ पॉलिटिक्स: सिर्फ भारत निशाने पर क्यों?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत के प्रति तीखी प्रतिक्रिया और 50% तक का टैरिफ लगाना, जबकि बाकी देशों पर ऐसा कोई दबाव नहीं, यह साफ संकेत देता है कि वाशिंगटन भारत की बढ़ती वैश्विक हैसियत से असहज है। यही नहीं, ट्रंप ने ब्रिक्स देशों पर 100% टैरिफ लगाने की धमकी भी दी थी, यदि वे मिलकर डॉलर का विकल्प तैयार करते हैं। इसका मतलब साफ है अमेरिका को इस संभावित गठजोड़ से खतरा महसूस हो रहा है।

डॉलर को चुनौती: रूस और चीन पहले से तैयार

भारत भले ही अभी सतर्क कदमों से चल रहा हो, लेकिन रूस और चीन पहले ही इस दिशा में सक्रिय हैं। चीन ने अपने व्यापारिक साझेदारों के साथ युआन में लेन-देन तेज कर दिया है। जबकि रूस ने यूक्रेन युद्ध के बाद डॉलर में कारोबार घटा दिया है और स्थानीय मुद्रा में लेन-देन को प्राथमिकता दी है। 

वहीं, भारत भी कुछ सीमित स्तर पर रूस और ईरान जैसे देशों के साथ रुपये में व्यापार की शुरुआत कर चुका है। अगर ये तीनों देश अपने आपसी व्यापार को पूरी तरह स्थानीय मुद्राओं में करने लगें, तो यह डॉलर को गहरी चोट पहुंचा सकता है।

ब्रिक्स करेंसी की भी संभावना तेज

ब्रिक्स समूह (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) के बीच पहले से ही वैकल्पिक करेंसी सिस्टम की बातचीत चल रही है। हालिया सम्मेलनों में सदस्य देशों ने डॉलर से परे व्यापार को लेकर गम्भीर चर्चा की है। 2024-25 के आंकड़े बताते हैं कि रूस, चीन और भारत तीनों मिलकर दुनिया की सबसे शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हैं। इनका संयुक्त अंतरराष्ट्रीय व्यापार 10 ट्रिलियन डॉलर से अधिक पहुंच चुका है। ऐसे में यदि ये देश ब्रिक्स करेंसी लाते हैं तो डॉलर खतरे में आ जायेगा।

क्या हो सकती है आगे की रणनीति?

स्थानीय करेंसी में व्यापार: युआन, रुपया और रूबल को प्राथमिकता देना।

ब्रिक्स पेमेंट सिस्टम: SWIFT की जगह अपना स्वतंत्र ट्रांजैक्शन नेटवर्क बनाना।

गोल्ड-बेस्ड करेंसी: संभावित नई ब्रिक्स मुद्रा को सोने से जोड़ना, जिससे उसका स्थायित्व बढ़े।

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