क्या है महंगाई भत्ते-महंगाई राहत का मामला?
जनवरी 2020 से जून 2021 तक, केंद्र सरकार ने तीन किस्तों में मिलने वाले डीए/डीआर को फ्रीज कर दिया था। यह निर्णय कोरोना काल की कठिन आर्थिक परिस्थितियों को देखते हुए लिया गया था। उस दौरान सरकार ने कुल 34,402 करोड़ रुपये बचाए, लेकिन यह राशि आज भी कर्मचारियों को नहीं मिली है।
कर्मचारी संगठनों का विरोध और मांगें
विभिन्न कर्मचारी संगठन, फेडरेशन्स और पेंशनर्स एसोसिएशन लगातार सरकार से इस बकाया राशि को जारी करने की मांग करते रहे हैं। जेसीएम स्टाफ साइड, नेशनल ज्वाइंट काउंसिल ऑफ एक्शन (NJCA), और अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ जैसी प्रमुख संस्थाओं ने वित्त मंत्रालय और कैबिनेट सचिव को कई बार ज्ञापन सौंपे हैं। इन संगठनों का तर्क है कि यह केवल भत्ता नहीं, बल्कि कर्मचारियों की वैध कमाई है, जिसे रोक कर उनके साथ अन्याय किया गया है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के फैसलों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा है कि ऐसे मामलों में सरकार को कर्मचारियों को देरी पर ब्याज सहित भुगतान करना होता है।
क्या है सरकार का पक्ष?
सरकार का कहना है कि कोविड के समय जो आर्थिक दबाव पड़ा था, उसके चलते डीए/डीआर को फ्रीज करना आवश्यक था। वित्त मंत्री और वित्त राज्य मंत्री बार-बार दोहरा चुके हैं कि "बकाया भुगतान का प्रश्न ही नहीं उठता"। उनका तर्क है कि वर्तमान में भी देश की राजकोषीय स्थिति (Fiscal Deficit) एफआरबीएम (FRBM) अधिनियम के अनुमत स्तर से ऊपर बनी हुई है, इसलिए ऐसे व्यय करना व्यावहारिक नहीं है।
बना राजनीतिक मुद्दा
यह मुद्दा अब केवल आर्थिक नहीं रहा, बल्कि यह राजनीतिक और नैतिक जिम्मेदारी से भी जुड़ गया है। सांसद आनंद भदौरिया जैसे नेता संसद में बार-बार यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या सरकार आर्थिक मजबूरी के नाम पर कर्मचारियों के हक को अनदेखा कर रही है? विपक्ष और कर्मचारी संगठनों का मानना है कि जब सरकार अर्थव्यवस्था के सुधरने की बात कर रही है, नई योजनाओं और परियोजनाओं पर खर्च कर रही है, तो फिर कर्मचारियों को उनका बकाया क्यों नहीं दिया जा रहा?
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