वर्षों से लंबित है मांग
इन शिक्षकों की नियुक्ति वर्ष 2001 में 11 महीने की संविदा पर ₹5,000 मानदेय पर की गई थी। इसके बाद हर वर्ष उनका नवीनीकरण होता रहा। वर्ष 2003 में हाईकोर्ट ने उनके पक्ष में समायोजन का आदेश दिया, और वर्ष 2006 में माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड अधिनियम में संशोधन कर उन्हें पूर्णकालिक शिक्षक का दर्जा दिया गया। इसके बावजूद इन्हें आज तक पुरानी पेंशन योजना में शामिल नहीं किया गया।
शिक्षक संगठनों और परिषद सदस्यों का तर्क है कि चूंकि इनका चयन वर्ष 2005 के पहले हुआ था और हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार इन्हें नियमित माना गया है, इसलिए इन्हें भी वैसी ही पेंशन सुविधा मिलनी चाहिए जैसी अन्य सरकारी सेवकों को मिलती है।
सरकार का पक्ष
माध्यमिक शिक्षा मंत्री गुलाब देवी का कहना है कि चूंकि इन शिक्षकों की प्रारंभिक नियुक्ति संविदा पर हुई थी और वह मौलिक पद पर नियुक्त नहीं माने गए, इसलिए वे पुरानी पेंशन योजना के पात्र नहीं हैं। हालांकि परिषद में इस मुद्दे पर विपक्ष सहित सत्तारूढ़ दल के कुछ सदस्यों ने भी इन शिक्षकों के पक्ष में अपनी आवाज बुलंद की। नेता प्रतिपक्ष लाल बिहारी यादव, भाजपा विधायक उमेश द्विवेदी और श्रीचंद शर्मा जैसे नेताओं ने इन शिक्षकों को पुरानी पेंशन दिए जाने की मांग का समर्थन किया।
राजनीतिक और नैतिक समर्थन बढ़ा
इस विषय पर जबरदस्त बहस के बाद अंततः शिक्षा मंत्री ने परिषद सदस्यों और अधिकारियों के साथ बैठक कर इस मामले पर मानक के आधार पर विचार करने की बात कही है। यह उन हजारों शिक्षकों के लिए एक उम्मीद की किरण है, जो वर्षों से इस मुद्दे को लेकर संघर्ष कर रहे हैं।
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