बिहार में 'जमीन मालिकों' के लिए 5 बड़ी खबर

पटना। बिहार में 16 अगस्त 2025 से एक ऐतिहासिक कदम उठाया जा रहा है ‘राजस्व महाअभियान’। यह सिर्फ़ एक ज़मीन सुधार अभियान नहीं है, बल्कि गांव-गांव में चल रही दस्तावेजी गड़बड़ियों, मौखिक बंटवारे और पीढ़ियों पुराने विवादों को खत्म करने की एक निर्णायक पहल है। इस महाअभियान का मकसद न केवल ज़मीन के रिकॉर्ड को सुधारना है, बल्कि ग्रामीण समाज में क़ानूनी पहचान और ज़मीन पर हक़दारी को लेकर एक नया खाका खींचना भी है।

1. ज़मीन रिकॉर्ड में सुधार का सबसे बड़ा प्रयास

आज भी बिहार की लाखों ज़मीनें ऐसी हैं जो या तो पुरखों के नाम पर दर्ज हैं या जिनकी जानकारी अधूरी है। सरकारी रिकॉर्ड भले ही डिजिटल हो गए हों, लेकिन ज़मीनी सच्चाई से मेल नहीं खाते। राज्य सरकार के पास 4.5 करोड़ जमाबंदियों का डेटा तो है, मगर उसमें भारी गड़बड़ियां हैं। गलत एंट्री, प्लॉट डिटेल की कमी और पुराने रिकॉर्ड का अधूरा डिजिटलीकरण। राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग अब इसे सुधारने के लिए गांव-गांव, घर-घर जाकर सत्यापन करेगा। इससे रिकॉर्ड न केवल अपडेट होंगे, बल्कि वर्षों से चले आ रहे झगड़ों और मुकदमेबाज़ी से भी राहत मिलेगी।

2. घर-घर दस्तक और कैंप से समाधान

राज्य के 45,000 रिवेन्यू विलेज में टीमें बनाई जा रही हैं जो प्रिंटेड जमाबंदी लेकर हर घर जाएंगी। लोगों को वहीं मौके पर सुधार दर्ज करने का मौका मिलेगा। इसके बाद पंचायत स्तर पर दो चरणों में ‘हल्का कैंप’ लगाया जाएगा। मौके पर प्राथमिक एंट्री, मोबाइल OTP से रजिस्ट्रेशन, अंचल कार्यालय में अंतिम निपटारा। यह प्रक्रिया सरल, पारदर्शी और समयबद्ध होगी ताकि ग्रामीणों को बेवजह सरकारी दफ्तरों के चक्कर न काटने पड़ें।

3. वंशावली और पहचान का नया तंत्र

एक बड़ी समस्या यह है कि कई ज़मीनें अब भी उन लोगों के नाम पर हैं जो अब जीवित नहीं हैं। उनकी संतानों के पास अधिकार तो हैं, लेकिन क़ानूनी दर्जा नहीं। इसके समाधान के लिए हर ऐसे परिवार को वंशावली बनवानी होगी, जिसे सरपंच प्रमाणित करेंगे। यदि मृत्यु प्रमाणपत्र उपलब्ध नहीं है, तो स्थानीय जनप्रतिनिधियों का सत्यापन मान्य होगा। यह व्यवस्था समाज की व्यवहारिक सच्चाई को स्वीकारती है और उसे क़ानूनी रूप देने की कोशिश करती है।

4. बाढ़ प्रभावित इलाकों के लिए विशेष इंतज़ाम

बिहार के करीब 10% पंचायतें हर साल बाढ़ की चपेट में आती हैं। सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि इन क्षेत्रों में कैंप तब लगाए जाएंगे जब स्थिति सामान्य होगी। यानी कोई भी व्यक्ति इस अभियान से वंचित न रहे।

5. ज़मीन सुधार और दस्तावेजी सत्ता का पुनर्गठन

यह महाअभियान सिर्फ़ दस्तावेज़ सुधार की प्रक्रिया नहीं है। यह एक सामाजिक दस्तावेज भी बन रहा है। वर्षों से चली आ रही मौखिक बंटवारे की व्यवस्था को अब कानूनी पहचान दी जाएगी। यानी अब कहानियों या पंचायत की बैठकों में तय हुए हिस्से कागज़ पर उतरेंगे, रजिस्ट्री में दर्ज होंगे और आने वाली पीढ़ियों के लिए विवाद से मुक्त ज़मीन बनेंगे।

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