एक ऐतिहासिक शुरुआत
IIT खड़गपुर की स्थापना 1951 में पश्चिम बंगाल के खड़गपुर शहर में हुई थी। यह संस्थान दरअसल ब्रिटिश काल की एक बंद हो चुकी हिजली जेल की इमारत में शुरू किया गया था। एक ऐसी जेल, जहां स्वतंत्रता संग्राम के कई क्रांतिकारियों को कैद रखा गया था। आज वही स्थान ज्ञान, नवाचार और प्रगति का प्रतीक बन चुका है। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस संस्थान की नींव यह सोचकर रखी थी कि देश को आत्मनिर्भर और तकनीकी रूप से सक्षम बनाने के लिए उच्च गुणवत्ता वाली तकनीकी शिक्षा अनिवार्य है।
तकनीकी शिक्षा की रोशनी
IIT खड़गपुर ने देश के युवाओं को तकनीकी क्षेत्र में वैश्विक प्रतिस्पर्धा के योग्य बनाया। यहां से निकले इंजीनियर, वैज्ञानिक, शोधकर्ता और उद्योगपति न केवल भारत में, बल्कि विश्व स्तर पर भी अपनी पहचान बना चुके हैं। आज, इस संस्थान के छात्र गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, टाटा, इसरो, नासा और अन्य वैश्विक संस्थानों के शीर्ष पदों पर आसीन हैं। यह संस्थान हर साल हजारों छात्रों को उच्च गुणवत्ता की शिक्षा देकर उन्हें भारत का भविष्य गढ़ने में मदद करता है।
नवाचार और अनुसंधान का केंद्र
IIT खड़गपुर न केवल शिक्षा बल्कि अनुसंधान और नवाचार के क्षेत्र में भी अग्रणी रहा है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, पर्यावरणीय विज्ञान, ग्रामीण विकास और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में इस संस्थान ने कई अहम प्रोजेक्ट्स पर काम किया है, जिनका सीधा लाभ समाज को मिला है।
दुनिया के लिए एक मॉडल संस्थान
IIT खड़गपुर ने न केवल अन्य IITs की राह प्रशस्त की, बल्कि देशभर के इंजीनियरिंग कॉलेजों के लिए एक आदर्श भी प्रस्तुत किया। IIT खड़गपुर केवल एक शिक्षण संस्थान नहीं है, बल्कि यह भारत के आत्मनिर्भर बनने की उस यात्रा की पहली सीढ़ी है, जो आज दुनिया भर में एक मिसाल बन चुकी है। इसने साबित किया है कि जब शिक्षा, नीति और दूरदर्शिता एक साथ चलते हैं, तो देश की दिशा भी बदल जाती है।
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