क्यों उठाया गया यह कदम?
अक्सर देखा गया है कि ज़मीन की विरासत या बंटवारे के समय मृत व्यक्तियों के प्रमाण-पत्रों की अनुपलब्धता एक बड़ी बाधा बन जाती है। वर्षों पुराने मामलों में मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाना समय लेने वाला और जटिल काम होता है, जिससे नामांतरण और बंटवारे की प्रक्रिया वर्षों तक अटकी रहती है। इस समस्या को जड़ से हल करने के लिए राज्य सरकार ने बेहद व्यावहारिक और जन-हितैषी पहल की है।
क्या है नया प्रावधान?
अब अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है और उसका मृत्यु प्रमाण पत्र उपलब्ध नहीं है, तो उसके उत्तराधिकारी सफेद कागज पर स्व-घोषणा पत्र देकर यह पुष्टि कर सकते हैं। यह घोषणापत्र संबंधित पंचायत के मुखिया या सरपंच से प्रमाणित होना चाहिए। इस दस्तावेज़ को मान्य प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जाएगा।
इसके अतिरिक्त, वंशावली में किसी सदस्य के नाम के साथ ‘मृत’ लिखा होने को भी अब एक मान्य प्रमाण माना जाएगा। इस निर्णय से ज़मीन के नामांतरण और बंटवारे की प्रक्रिया में वर्षों से लंबित मामलों का निपटारा जल्दी और सुगमता से हो सकेगा।
प्रशासनिक स्तर पर तैयारी
राजस्व महा-अभियान के सुचारु संचालन के लिए 10 अगस्त को राजस्व सर्वे प्रशिक्षण संस्थान, पटना में पंचायत प्रतिनिधियों के संघों के साथ बैठक हुई थी। इसमें प्राप्त सुझावों के आधार पर यह निर्णय लिया गया। राज्य के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह ने सभी जिलों के समाहर्ताओं को निर्देश जारी किए हैं कि वे अपने अधीनस्थ पदाधिकारियों को इस आदेश का पालन सुनिश्चित कराएं।
जनता को कैसे होगा फायदा?
प्रमाण-पत्र बनवाने की जटिलता होगी कम
ब्लॉक स्तर पर अधिकारियों की मनमानी पर लगेगी लगाम
पुराने ज़मीनी विवादों के मामलों का निपटारा तेज़ी से होगा
उत्तराधिकार आधारित नामांतरण प्रक्रिया होगी पारदर्शी और सुलभ
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