तीन बड़े रक्षा समझौते की उम्मीद
रूसी मीडिया और रक्षा विश्लेषकों की मानें तो पुतिन के इस दौरे में तीन प्रमुख हथियार प्रणालियों पर भारत-रूस के बीच समझौते की संभावना है:
1 .Sukhoi Su-57 फाइटर जेट: भारत लंबे समय से पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों की तलाश में है। Su-57 रूस की इसी श्रेणी का प्रमुख फाइटर है। अगर भारत इस प्रोजेक्ट में शामिल होता है, तो यह न केवल भारत की वायुशक्ति को मजबूत करेगा, बल्कि स्वदेशी तकनीक विकास के लिए भी रूस के साथ गहराई से काम करने का अवसर देगा।
2 .MiG-29 और Su-30MKI का अपग्रेड: भारतीय वायुसेना के वर्तमान फ्लीट में MiG-29 और Su-30MKI की बड़ी संख्या है। इन्हें अपग्रेड करने की योजना का उद्देश्य है। इनकी मारक क्षमता बढ़ाना, आधुनिक एवियोनिक्स से लैस करना और इन्हें भविष्य के युद्ध परिदृश्यों के लिए तैयार करना।
3 .Akash मिसाइल सिस्टम का रूस के साथ एकीकरण: भारत में विकसित Akash मिसाइल सिस्टम की सफलता ने इसे वैश्विक स्तर पर एक सशक्त प्लेटफॉर्म बना दिया है। इसे रूसी रक्षा प्लेटफॉर्म्स के साथ इंटीग्रेट करने की बातचीत "मेक इन इंडिया" को एक नई दिशा दे सकती है और रूस के साथ टेक्नोलॉजी साझा करने की एक मिसाल भी कायम कर सकती है।
अमेरिका की पैनी नजर और टैरिफ डिप्लोमेसी
पुतिन का यह प्रस्तावित दौरा ऐसे समय पर हो रहा है जब अमेरिका भारत पर टैरिफ को लेकर दबाव बना रहा है। राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा अपनाई गई 'टैरिफ फर्स्ट' नीति ने भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में हलचल पैदा की है। ऐसे में भारत द्वारा रूस के साथ रक्षा सौदों की दिशा में आगे बढ़ना अमेरिका के लिए एक स्पष्ट संदेश हो सकता है। भारत अपने निर्णय स्वतंत्र रूप से लेता है, चाहे वो सैन्य हो या कूटनीतिक।
भारत की संतुलित विदेश नीति: ना झुकाव, ना दूरी
भारत की विदेश नीति पिछले कुछ वर्षों में "मल्टी-अलाइनमेंट" की दिशा में बढ़ी हैं। भारत अब किसी एक ध्रुव पर निर्भर नहीं रहना चाहता। अमेरिका, रूस, फ्रांस, इज़राइल और अन्य देशों के साथ संतुलित संबंधों के जरिए भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखना चाहता है। इस नीति का लाभ यह है कि भारत को विविध तकनीकों और साझेदारों से सामरिक लाभ मिल रहा है।
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