न्यूज डेस्क। बीजिंग के तियानमेन चौक पर आयोजित विक्ट्री डे परेड में इस बार चीन ने जो शक्ति प्रदर्शन किया, उसने न केवल पड़ोसी देशों को बल्कि अमेरिका और यूरोप जैसे वैश्विक ताकतवर देशों को भी चौकन्ना कर दिया। चीन ने पहली बार अपनी नई इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल DF-5C को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया जो कि परमाणु हथियारों की होड़ में उसकी नई रणनीतिक छलांग का संकेत है।
चीन की ग्लोबल टाइम्स ने बताया है कि इसकी रेंज 20,000 किलोमीटर से अधिक हैं। जिसका अर्थ है कि यह विश्व के किसी भी कोने तक परमाणु हमला कर सकती है। यह एक लिक्विड-फ्यूल्ड मिसाइल है, जो कि अपनी श्रेणी की सबसे उन्नत मिसाइलों में से एक मानी जा रही है।
DF-5C की छह प्रमुख खूबियां
1. नई संरचना और त्वरित प्रक्षेपण क्षमता: DF-5C का डिज़ाइन पूरी तरह से नया है। इसे तीन भागों में ट्रांसपोर्ट किया जाता है, जिससे इसके लॉन्च की तैयारी पहले की DF-5 मिसाइलों की तुलना में कहीं तेजी से की जा सकती है। इसका मतलब है कि किसी भी आकस्मिक संकट के समय चीन तुरंत जवाब देने की स्थिति में रहेगा।
2. अविश्वसनीय रेंज और दुर्गमता: 20,000 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय करने की क्षमता इसे “ग्लोबल कवरेज स्ट्राइक कैपेबिलिटी” प्रदान करती है। यह इतनी ऊंचाई और गति से उड़ती है कि वर्तमान में दुनिया में मौजूद कोई भी एयर डिफेंस सिस्टम इसे प्रभावी रूप से रोक नहीं सकता।
3. लॉन्च के लचीले तरीके: DF-5C को अलग-अलग तरीकों से लॉन्च किया जा सकता है, चाहे वह जमीन से हो या अन्य मोबाइल प्लेटफॉर्म से। इसके गुप्त और लचीले तैनाती विकल्प इसे और भी खतरनाक बनाते हैं। इसकी तेज रफ्तार लगभग 12,000 किमी प्रति घंटे हैं।
4. MIRV तकनीक से लैस: इस मिसाइल में MIRV (Multiple Independently Targetable Re-entry Vehicle) तकनीक है, जो इसे एक साथ कई निशानों पर हमला करने की क्षमता देती है। यह परमाणु, पारंपरिक, और यहां तक कि नकली वारहेड्स भी ले जा सकती है, जिससे दुश्मन के डिफेंस सिस्टम को धोखा दिया जा सके।
5. एडवांस गाइडेंस सिस्टम: इस मिसाइल की गाइडेंस प्रणाली अत्यंत परिष्कृत है। इसे लॉन्च के समय विभिन्न तरीकों से निर्देशित किया जा सकता है। इससे दुश्मन की वायु रक्षा प्रणाली को इसे इंटरसेप्ट करना और मुश्किल हो जाता है।
वैश्विक प्रभाव और संदेश
इस मिसाइल का प्रदर्शन चीन की रक्षा नीति में एक बड़े बदलाव की ओर इशारा करता है। यह केवल तकनीकी उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह दुनिया को यह बताने का तरीका भी है कि चीन अब परमाणु शक्ति के मामले में न केवल आत्मनिर्भर है, बल्कि रणनीतिक रूप से अग्रणी भूमिका निभाने के लिए तैयार है।
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