सुपरपावर की होड़: अमेरिका-चीन के बीच वैश्विक वर्चस्व की जंग तेज

नई दिल्ली। 21वीं सदी में वैश्विक शक्ति संतुलन की तस्वीर तेजी से बदल रही है। एक ओर है अमेरिका दशकों से दुनिया की निर्विवाद महाशक्ति, और दूसरी ओर उभरता हुआ चीन जो न केवल आर्थिक मोर्चे पर बल्कि तकनीकी, सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर भी अमेरिका को चुनौती दे रहा है। यह प्रतिस्पर्धा अब सिर्फ दो देशों के बीच नहीं रही, बल्कि इसका असर पूरी दुनिया की राजनीति, अर्थव्यवस्था और सुरक्षा पर पड़ रहा है।

आर्थिक प्रभुत्व की होड़

चीन बीते दो दशकों में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। चीन की जीडीपी 19 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हैं। ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) के ज़रिए उसने दर्जनों विकासशील देशों में निवेश कर अपना प्रभाव फैलाया है। वहीं अमेरिका, अपनी पारंपरिक आर्थिक ताकत और डॉलर की वैश्विक पकड़ के ज़रिए चीन की इस रणनीति का जवाब देने की कोशिश कर रहा है। हालांकि अमेरिका की जीडीपी(30 ट्रिलियन डॉलर) चीन से अभी भी काफी बड़ी हैं।

तकनीकी टकराव

टेक्नोलॉजी अब नया युद्धक्षेत्र बन चुकी है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, 5G नेटवर्क, साइबर सुरक्षा, और अंतरिक्ष में वर्चस्व इन सभी क्षेत्रों में अमेरिका और चीन के बीच होड़ लगातार तेज होती जा रही है। अमेरिका ने जहां चीन की टेक कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए हैं, वहीं चीन ने अपने घरेलू तकनीकी विकास पर ज़ोर बढ़ा दिया है।

सैन्य शक्ति और रणनीतिक मोर्चा

दक्षिण चीन सागर, ताइवान, और हिंद-प्रशांत क्षेत्र अब दोनों देशों की सैन्य गतिविधियों के केंद्र में हैं। अमेरिका ने अपने पुराने सहयोगियों जैसे जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया के साथ रणनीतिक गठबंधन मजबूत किए हैं, वहीं चीन अपनी नौसेना और मिसाइल प्रणाली को आधुनिक बनाने में जुटा है। ताइवान को लेकर दोनों देशों के बीच तनातनी आने वाले वर्षों में और गंभीर रूप ले सकती है।

कूटनीतिक समीकरण में भी जंग 

चीन वैश्विक संस्थानों में अपनी भागीदारी और प्रभाव को बढ़ा रहा है, चाहे वो संयुक्त राष्ट्र हो, BRICS हो या G20। अमेरिका, NATO, G-7 और अन्य पारंपरिक गठबंधनों के ज़रिए चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने की कोशिश कर रहा है। अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के कई देशों में दोनों महाशक्तियाँ अपनी-अपनी पकड़ मजबूत करने में लगी हैं।

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