ब्रिक्स ने अमेरिका को दी चुनौती, भारत ने दिखाई ताकत

नई दिल्ली। न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र के बाहर ब्रिक्स देशों के विदेश मंत्रियों की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई, जिसकी अध्यक्षता भारत ने की। यह बैठक वैश्विक कूटनीति में भारत की बढ़ती भूमिका और उसकी रणनीतिक स्वायत्तता को दर्शाती है। खास बात यह है कि यह बैठक अमेरिका की बढ़ती आर्थिक और राजनीतिक दबाव के बीच हुई, जिससे यह साफ संकेत मिलता है कि भारत एक स्वतंत्र और संतुलित नीति अपनाते हुए अपने हितों की रक्षा कर रहा है।

भारत का संदेश: किसी एक घेरे में नहीं बंधेंगे

एक्सपर्ट ने इस बैठक को भारत की चतुर और प्रभावशाली कूटनीतिक पहल बताया है। भारत ने ब्रिक्स के मंच पर अपनी रणनीतिक स्वायत्तता का परिचय दिया है, खासकर ऐसे वक्त में जब अमेरिकी प्रशासन डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में टैरिफ और व्यापार को लेकर सख्त रुख अपनाए हुए है। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह न केवल अमेरिका के साथ संबंध बनाए रखेगा, बल्कि अपने बहुपक्षीय कूटनीतिक दृष्टिकोण को भी सुदृढ़ करेगा।

बैठक का एजेंडा: सहयोग और बहुपक्षीयता

ब्रिक्स देशों के विदेश मंत्रियों ने इस बैठक में वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों पर व्यापक चर्चा की। राजनीतिक सुरक्षा, आर्थिक सहयोग, वित्तीय स्थिरता और सतत विकास जैसे विषय बैठक के मुख्य फोकस रहे। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के एजेंडे के अनुरूप ब्रिक्स के भीतर सहयोग को और बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई।

मंत्रियों ने इस बात पर भी जोर दिया कि बढ़ते वैश्विक संरक्षणवाद, टैरिफ्स और गैर-शुल्क बाधाओं के बीच बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था को बचाना आवश्यक है। उन्होंने वैश्विक दक्षिण के देशों के हितों की रक्षा और वैश्विक व्यापार व्यवस्था में संतुलन बनाए रखने के लिए मिलकर काम करने की जरूरत पर जोर दिया।

जयशंकर का जोर: बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था की सुरक्षा

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बैठक में स्पष्ट रूप से कहा कि वर्तमान वैश्विक आर्थिक माहौल चुनौतीपूर्ण है। उन्होंने बढ़ते संरक्षणवाद और टैरिफ से व्यापार में हो रही कठिनाइयों को लेकर चिंता जताई। जयशंकर ने कहा कि ब्रिक्स को मिलकर एक मजबूत बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था का समर्थन करना चाहिए, जो सभी देशों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करे।

जयशंकर ने यह भी कहा कि बढ़ते आर्थिक दबाव के बीच ब्रिक्स के देशों को न केवल व्यापारिक सहयोग बढ़ाना होगा, बल्कि राजनीतिक और सांस्कृतिक साझेदारी को भी सुदृढ़ करना होगा ताकि यह समूह वैश्विक मंच पर एक मजबूत ताकत के रूप में उभर सके।

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