यूरो का उदय: एक संक्षिप्त इतिहास
यूरो की शुरुआत 1 जनवरी 1999 को हुई, जब 11 यूरोपीय देशों ने अपनी राष्ट्रीय मुद्राओं को त्यागकर एक साझा मुद्रा अपनाई। आज यह 20 देशों की अर्थव्यवस्था को जोड़ती है, जिसमें जर्मनी, फ्रांस और इटली जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं। यूरोपीय सेंट्रल बैंक (ईसीबी) द्वारा नियंत्रित यह मुद्रा ब्रेटन वुड्स समझौते के बाद डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देने वाली पहली प्रमुख वैश्विक मुद्रा बनी। फेडरल रिजर्व की रिपोर्ट के अनुसार, डॉलर की अंतरराष्ट्रीय भूमिका में यूरो दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा रखती है।
भुगतान, व्यापार और भंडार में यूरो की ताकत
2025 में अंतरराष्ट्रीय भुगतानों में डॉलर के बाद यूरो सबसे ज्यादा इस्तेमाल हो रही मुद्रा है। एसडब्ल्यूआईएफटी के आंकड़ों के मुताबिक, वैश्विक भुगतानों में यूरो की हिस्सेदारी लगभग 30-35 प्रतिशत है, जो डॉलर के 40 प्रतिशत के बाद आती है। वहीं, फॉरेक्स ट्रेडिंग में भी यूरो दूसरी सबसे ट्रेडेड मुद्रा है।
विदेशी मुद्रा भंडार में यूरो की भूमिका और भी मजबूत है। आईएमएफ के सीओएफईआर डेटा के अनुसार, 2025 की पहली तिमाही में वैश्विक भंडारों में डॉलर की हिस्सेदारी 57.74 प्रतिशत रही, जबकि यूरो की 19.83 प्रतिशत। यह हिस्सेदारी पिछले पांच वर्षों में स्थिर रही है, जो यूरो को डॉलर के बाद सबसे विश्वसनीय रिजर्व करेंसी बनाती है।
यूरो की प्रमुखता के कारण: स्थिरता और विश्वास
यूरो की लोकप्रियता के पीछे कई कारक हैं। सबसे पहले, यूरोपीय संघ की संयुक्त जीडीपी दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी है, जो वैश्विक व्यापार में इसकी मजबूत स्थिति सुनिश्चित करती है। दूसरा, ईसीबी की सख्त मौद्रिक नीतियां जैसे ब्याज दरों का नियंत्रण और मुद्रास्फीति पर अंकुश, यूरो को सेफ-हेवन स्टेटस देती हैं।
2025 में, जब अमेरिकी डॉलर पर ट्रंप प्रशासन की व्यापार नीतियों से दबाव बढ़ा, तब यूरो ने निवेशकों का भरोसा जीता हैं। फेडरल रिजर्व की 2025 एडिशन रिपोर्ट के अनुसार, डॉलर की अंतरराष्ट्रीय उपयोगिता में यूरो की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत तक है, जो फॉरेन करेंसी डेब्ट, बैंकिंग क्लेम्स और लायबिलिटीज में दिखाई देती है। यह डॉलर के बाद अन्य मुद्राओं जैसे येन (5-6 प्रतिशत) या युआन (2-3 प्रतिशत) से कहीं अधिक है।
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