दुनिया बदल रही है: भारत और चीन बन सकते हैं नए सुपरपावर

नई दिल्ली। बीसवीं सदी में जब भी "सुपरपावर" शब्द का जिक्र होता था, अमेरिका और सोवियत संघ के नाम स्वतः ही सामने आ जाते थे। शीत युद्ध के बाद अमेरिका ने वैश्विक शक्ति संतुलन में एकछत्र प्रभुत्व कायम रखा। लेकिन इक्कीसवीं सदी की तीसरी तिमाही में आते-आते हालात बदलते नजर आ रहे हैं। अब यह सवाल बार-बार उठ रहा है: क्या आने वाले दशकों में भारत और चीन अमेरिका को टक्कर देकर नए वैश्विक सुपरपावर बन सकते हैं?

भारत: जनसंख्या, तकनीक और लोकतंत्र की ताक़त

भारत अब दुनिया की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है, और यह आंकड़ा मात्र जनसंख्या वृद्धि नहीं, बल्कि आर्थिक और रणनीतिक दृष्टिकोण से भी बेहद अहम है। भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ रही है। IMF और वर्ल्ड बैंक जैसी संस्थाओं के अनुमान के अनुसार, भारत अगले कुछ वर्षों में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है।

तकनीकी क्षेत्र में भारत की गिनती अब अग्रणी देशों में की जाने लगी है। डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और मेक इन इंडिया जैसे अभियानों ने भारत की वैश्विक पहचान को मजबूत किया है। साथ ही, ISRO की चंद्रयान और गगनयान जैसी परियोजनाएं यह दिखा रही हैं कि भारत अब सिर्फ एक विकासशील देश नहीं, बल्कि स्पेस पावर भी बन रहा है। भारत का लोकतांत्रिक ढांचा और युवा जनसंख्या भी उसे दीर्घकालीन रूप से वैश्विक नेतृत्व के लिए तैयार करते हैं।

चीन: आर्थिक ताक़त और वैश्विक दखल

चीन ने पिछले तीन दशकों में जो आर्थिक प्रगति की है, वह अभूतपूर्व है। आज चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और कई क्षेत्रों में अमेरिका से भी आगे निकल चुका है, जैसे कि निर्माण, निर्यात और वैश्विक आधारभूत ढांचे (Belt and Road Initiative) में निवेश।

चीनी सरकार का केंद्रीकृत नियंत्रण और दीर्घकालिक रणनीतियां उन्हें वैश्विक राजनीति में प्रभावी खिलाड़ी बनाती हैं। चीन की 'सॉफ्ट पावर' और अफ्रीका, लैटिन अमेरिका तथा एशिया में बढ़ती राजनयिक गतिविधियाँ यह संकेत देती हैं कि वह सिर्फ एक क्षेत्रीय शक्ति नहीं, बल्कि वैश्विक मंच पर निर्णायक भूमिका निभाने को तैयार है।

अमेरिका की चुनौतियाँ और शक्ति संतुलन में बदलाव

हालांकि अमेरिका अब भी सैन्य, तकनीकी और सांस्कृतिक रूप से सबसे प्रभावशाली देश है, लेकिन हाल के वर्षों में उसकी वैश्विक पकड़ में कुछ ढील देखने को मिली है। घरेलू राजनीतिक ध्रुवीकरण, बढ़ता ऋण, और वैश्विक मामलों में कभी-कभी अस्थिर रणनीति ने उसकी छवि को प्रभावित किया है। यही कारण है कि विश्व मंच पर एक बहुपक्षीय शक्ति-संतुलन उभर रहा है, जिसमें भारत और चीन जैसे देश केंद्रीय भूमिका निभा सकते हैं।

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