पहला वेतन आयोग (1946):
देश की आज़ादी से पहले गठित इस आयोग ने सरकारी कर्मचारियों की न्यूनतम सैलरी ₹25 और अधिकतम ₹800 तय की थी। इस समय सीमित भत्ते ही दिए जाते थे जैसे टिफिन और यात्रा भत्ता।
दूसरा वेतन आयोग (1959):
इस आयोग की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि पहली बार महंगाई भत्ता (DA) को नियमित रूप से देने का प्रस्ताव आया। साथ ही टिफिन और यूनिफॉर्म अलाउंस की शुरुआत हुई।
तीसरा वेतन आयोग (1973):
इस बार DA के लिए अलग-अलग स्लैब तय किए गए और कर्मचारियों को पहली बार HRA यानी मकान किराया भत्ता मिलना शुरू हुआ। इसके अलावा चिकित्सा और ट्रांसपोर्ट भत्ता भी जोड़ा गया।
चौथा वेतन आयोग (1986):
DA को स्वचालित स्लैब से जोड़ दिया गया। HRA को तीन श्रेणियों – 15%, 20% और 30% – में बांटा गया। इसके अलावा LTC (छुट्टी यात्रा रियायत) और CCA (शहर क्षतिपूर्ति भत्ता) में भी संशोधन किया गया।
पांचवां वेतन आयोग (1996):
इस आयोग में यह तय हुआ कि जब भी DA 50% से अधिक हो जाए, तो उसे मूल वेतन में मर्ज कर दिया जाएगा। HRA की दरें निर्धारित की गईं और नई पेंशन योजना (NPS) की नींव भी इसी समय रखी गई।
छठा वेतन आयोग (2006):
DA को हर 6 महीने में संशोधित करने की व्यवस्था की गई। शहरों को X, Y, Z कैटेगरी में बांटकर HRA की दरें क्रमशः 30%, 20% और 10% तय की गईं। ग्रेड पे सिस्टम लागू हुआ और ट्रांसपोर्ट अलाउंस में बढ़ोतरी हुई।
सातवां वेतन आयोग (2016):
इस आयोग ने ग्रेड पे हटाकर पे लेवल सिस्टम लागू किया। DA अब मूल वेतन पर आधारित हो गया और HRA की दरें क्रमशः 24%, 16% और 8% कर दी गईं। बच्चों की शिक्षा सहायता को बढ़ाया गया और अन्य कई सुविधाओं में सुधार किया गया।
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