तकनीकी चमत्कार और अभेद्य शक्ति
INS अरिहंत का निर्माण भारतीय नौसेना, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और अन्य स्वदेशी रक्षा संस्थानों के सहयोग से हुआ है। लगभग 112 मीटर लंबी और 6,000 टन से अधिक वजनी यह पनडुब्बी दुश्मनों के लिए एक अदृश्य खतरा है। इसकी सबसे बड़ी ताकत इसका परमाणु प्रणोदन तंत्र है, जो इसे बिना सतह पर आए हफ्तों तक पानी के नीचे रहने की क्षमता देता है – और यही इसे एक रणनीतिक ‘गेम चेंजर’ बनाता है।
परमाणु त्रय की पूर्णता
INS अरिहंत के सेवा में आने के साथ ही भारत ने अपना परमाणु त्रय पूरा कर लिया है – यानी थल, जल और नभ से परमाणु हमला करने की क्षमता। यह त्रय किसी भी देश की परमाणु रणनीति की रीढ़ होता है, और भारत अब उन गिने-चुने देशों की सूची में शामिल हो गया है, जिनके पास यह क्षमता है।
बैलिस्टिक मिसाइलों की ताकत
अरिहंत को 12 ऊर्ध्वाधर प्रक्षेपण ट्यूबों से लैस किया गया है, जिनसे वह K-15 'सागरिका' मिसाइल (750 किमी रेंज) और K-4 मिसाइल (3,500 किमी रेंज) दाग सकती है। खास बात यह है कि ये मिसाइलें जल के नीचे से दुश्मन पर सटीक निशाना साध सकती हैं, जिससे भारत को विश्वसनीय द्वितीय-आक्रमण क्षमता (Second Strike Capability) मिलती है – जो कि किसी भी परमाणु निरोध नीति के लिए अत्यंत आवश्यक है।
आत्मनिर्भर भारत की मिसाल
INS अरिहंत भारत की ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल का एक गौरवशाली उदाहरण है। इसके निर्माण से भारत ने यह साबित कर दिया कि वह अत्याधुनिक रक्षा तकनीक के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनता जा रहा है। यह पनडुब्बी केवल एक सैन्य संपत्ति नहीं, बल्कि भारतीय विज्ञान, इंजीनियरिंग और रक्षा क्षेत्र की सामूहिक शक्ति का प्रमाण है।
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