समुद्री मोर्चे पर नई तैयारी
अब तक भारत के बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (BMD) सिस्टम की क्षमताएं ज़मीन पर केंद्रित थीं। यह सिस्टम प्रमुख शहरों और संवेदनशील ठिकानों की सुरक्षा करता है, लेकिन समुद्री क्षेत्र जहां गतिशीलता और त्वरित प्रतिक्रिया सबसे अहम होती है, वहां यह कवरेज नहीं देता था। यही कमी अब दूर होने जा रही है।
नया ABM सिस्टम पूरी तरह से समुद्र आधारित होगा, यानी इसे नौसेना के युद्धपोतों पर तैनात किया जाएगा। इससे भारत को एक मोबाइल और फ्लेक्सिबल रक्षा कवच मिलेगा, जो किसी भी समय, किसी भी दिशा से आने वाले मिसाइल हमले को समुद्र में ही निष्क्रिय कर सकेगा।
रणनीतिक मजबूती: चीन को जवाब
इस सिस्टम का विकास खासतौर पर चीन द्वारा विकसित की जा रही एंटी-शिप बैलिस्टिक मिसाइलों (ASBM) के बढ़ते खतरे को ध्यान में रखकर किया जा रहा है। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (PLAN) की मिसाइल क्षमताएं हिन्द महासागर क्षेत्र में भारत की नौसैनिक उपस्थिति को चुनौती दे रही थीं। अब, इस डिफेंस सिस्टम के आने से भारत भी एक सशक्त प्रतिकारक ताकत बन कर उभरेगा।
तकनीकी विशेषताएं: रक्षा का भविष्य
यह सी-बेस्ड सिस्टम एक एडवांस इंटरसेप्टर मिसाइल से लैस होगा, जिसे नौसेना के युद्धपोतों से वर्टिकल लॉन्च किया जा सकेगा। यह मिसाइल केवल बैलिस्टिक मिसाइलों को ही नहीं, बल्कि दुश्मन के लड़ाकू विमानों, ड्रोन और क्रूज मिसाइलों को भी प्रभावी ढंग से निशाना बना सकती है।
विशेष रूप से, M2 प्लेटफॉर्म पर आधारित यह इंटरसेप्टर मिसाइल Mach 7 यानी ध्वनि की गति से सात गुना तेज गति से लक्ष्य भेदने में सक्षम होगी। इसकी मारक क्षमता लगभग 250 से 300 किलोमीटर होगी, जो इसे लंबी दूरी की सुरक्षा कवच में तब्दील करती है। यह पूरा सिस्टम अत्याधुनिक AESA रडार से जुड़ा रहेगा, जो लक्ष्य को सटीक ट्रैक और गाइड करने का कार्य करेगा।
2027 की तैयारी: ट्रायल से तैनाती की ओर
DRDO द्वारा यह परियोजना भारत के बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस प्रोग्राम के फेज-II की तकनीकी नींव पर आधारित है। इसे आत्मनिर्भर भारत मिशन के तहत स्वदेशी तकनीक और संसाधनों से विकसित किया जा रहा है। अनुमान है कि इसका पहला ट्रायल 2027 तक किया जाएगा। यदि यह परीक्षण सफल रहता है, तो यह सिस्टम भारतीय नौसेना के युद्धपोतों पर नियमित रूप से तैनात कर दिया जाएगा।
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