F-35 या Su-57 नहीं, भारत फिर खरीदेगा राफेल!

नई दिल्ली। भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान दुनिया को यह दिखा दिया कि भारत अब सिर्फ जवाब नहीं देता, बल्कि दुश्मन की हर साजिश को मुंहतोड़ जवाब देने में भी सक्षम है। इस ऑपरेशन में भारतीय सेना और वायुसेना की निर्णायक भूमिका रही। खासकर वायुसेना ने पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाकर यह साबित कर दिया कि उसकी क्षमता सिर्फ सीमाओं तक सीमित नहीं, बल्कि दुश्मन के घर तक पहुंचने में भी सक्षम है।

वायुसेना की बढ़ती जरूरतें

भारत की रक्षा रणनीति अब सिर्फ जवाबी कार्रवाई तक सीमित नहीं है। आने वाले समय में वायुसेना को और मजबूती देने की दिशा में बड़ा कदम उठाया जा रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय वायुसेना अधिक राफेल फाइटर जेट्स की मांग की है। इसके पीछे एक बड़ा कारण वायुसेना में स्क्वाड्रनों की गिरती संख्या है। अभी जहां देश को 42 स्क्वाड्रन की जरूरत है, वहीं वायुसेना के पास फिलहाल केवल 29 स्क्वाड्रन हैं। यह कमी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से एक गंभीर विषय है।

MRFA प्रोजेक्ट के तहत बड़ा सौदा?

भारतीय वायुसेना ने MRFA (Multi-Role Fighter Aircraft) प्रोजेक्ट के तहत 114 बहुउद्देशीय लड़ाकू विमानों की खरीद की सिफारिश की है। इस सूची में फ्रांसीसी राफेल फिर सबसे आगे नजर आ रहा है। भारत और फ्रांस के बीच पहले से ही राफेल को लेकर विश्वास का रिश्ता बना हुआ है। अब अगर यह डील आगे बढ़ती है, तो भारत की वायु शक्ति में जबरदस्त उछाल आ सकता है।

क्यों राफेल फिर से बन सकता है पसंदीदा?

राफेल को भले ही 5वीं पीढ़ी का जेट न माना जाता हो, लेकिन इसकी 4.5 जेनरेशन की क्षमताएं कई मायनों में पाकिस्तानी और चीनी फाइटर जेट्स को चुनौती देती हैं। राफेल की लंबी दूरी तक वार करने की क्षमता, आधुनिक एवियोनिक्स, और मल्टी-रोल ऑपरेशन की क्षमता ने इसे भारतीय वायुसेना का भरोसेमंद योद्धा बना दिया है।

पड़ोसियों की ताकत और भारत की तैयारी

जहां चीन के पास 66 स्क्वाड्रन और पाकिस्तान के पास 25 स्क्वाड्रन हैं, वहीं भारत फिलहाल 29 स्क्वाड्रन के साथ काम कर रहा है। चीन और पाकिस्तान दोनों ही अब 5वीं पीढ़ी के फाइटर जेट्स की दिशा में काफी आगे बढ़ चुके हैं। ऐसे में भारत के लिए जरूरी हो गया है कि वह अपनी वायुसेना को और अधिक आधुनिक बनाए। राफेल इस आवश्यकता को काफी हद तक पूरा कर सकता है।

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