क्यों लिया गया यह फैसला?
राज्य में पंचायती राज व्यवस्था के तहत करीब 2.5 लाख जन-प्रतिनिधि कार्यरत हैं। इनमें बड़ी संख्या में ऐसे प्रतिनिधि हैं जो अपने कार्यक्षेत्र में सुरक्षा की दृष्टि से खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं। इन प्रतिनिधियों की ओर से लंबे समय से यह मांग की जा रही थी कि उन्हें आत्मरक्षा के लिए शस्त्र लाइसेंस दिया जाए। पंचायत प्रतिनिधियों ने कई बार इस मुद्दे को विधानमंडल में उठाया था। हाल ही में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी इस संबंध में स्पष्ट निर्देश दिए कि नियमानुसार योग्य प्रतिनिधियों को तय समयसीमा में शस्त्र लाइसेंस प्रदान किया जाए।
आदेश का विवरण
गृह विभाग के अवर सचिव मनोज कुमार सिन्हा द्वारा जारी पत्र में कहा गया है कि मुख्यमंत्री की घोषणा के अनुरूप, पंचायत प्रतिनिधियों के शस्त्र लाइसेंस आवेदनों को आयुध नियम, 2016 के तहत तय प्रक्रिया और समयसीमा में निपटाया जाए। इस पत्र के माध्यम से जिला प्रशासन को स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि जो भी आवेदन आएं, उनकी जांच कर निर्धारित प्रक्रिया के तहत उन्हें समय पर निष्पादित किया जाए।
क्या होगा प्रक्रिया में बदलाव?
प्रक्रिया में कोई छूट नहीं दी जाएगी, लेकिन पंचायत प्रतिनिधियों के मामले में प्राथमिकता के आधार पर निपटारा होगा। यानी, यदि कोई मुखिया, सरपंच या अन्य पंचायत प्रतिनिधि शस्त्र लाइसेंस के लिए आवेदन करता है, तो उसकी फाइल लंबित नहीं रखी जाएगी। आवेदन की जाँच पूरी कर समयबद्ध तरीके से निर्णय लिया जाएगा।
चुनाव से पहले अहम कदम
राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह निर्णय विधानसभा चुनाव से पहले सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक कदम माना जा रहा है। इससे पंचायत प्रतिनिधियों में सरकार के प्रति भरोसा बढ़ेगा और वे चुनावी मोर्चे पर सरकार का समर्थन कर सकते हैं।
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