क्या है फिटमेंट फैक्टर?
फिटमेंट फैक्टर वह गुणांक (Multiplier) होता है जिससे कर्मचारियों की मौजूदा बेसिक सैलरी को गुणा करके नई बेसिक सैलरी तय की जाती है। उदाहरण के तौर पर, 7वें वेतन आयोग में यह फैक्टर 2.57 था, जिससे न्यूनतम बेसिक सैलरी 7,000 रुपये से बढ़ाकर 18,000 रुपये की गई थी। अब 8वें वेतन आयोग में इसे बढ़ाकर 2.86 किए जाने की अटकलें लग रही हैं, लेकिन क्या वास्तव में ऐसा होगा?
कर्मचारियों की मांगें क्या हैं?
नेशनल काउंसिल (NC JCM) के कर्मचारी पक्ष ने केंद्र सरकार के समक्ष कई अहम मांगें रखी हैं, जिनमें मुख्य हैं: फिटमेंट फैक्टर को कम से कम 3.68 करने की मांग, न्यूनतम बेसिक सैलरी को 26,000 रुपये या उससे अधिक तक बढ़ाना। इंडस्ट्रियल और नॉन-इंडस्ट्रियल कर्मचारियों, रक्षा बलों, अर्धसैनिक बलों, ग्रामीण डाक सेवकों आदि की सैलरी, पेंशन और भत्तों में सुधार, पेंशनर्स के लिए अलग सुधार पैकेज।
क्या सरकार मान लेगी सभी मांगें?
हालांकि उम्मीदें ज़रूर हैं, लेकिन हकीकत थोड़ी अलग नजर आ रही है। कई आर्थिक जानकार बताते हैं की सरकार शायद 1.92 के फिटमेंट फैक्टर पर ही समझौता करे। इसका अर्थ है कि कर्मचारियों को उतनी राहत शायद न मिले जितनी वे मांग कर रहे हैं। अगर ऐसा होता है, तो 2.86 की उम्मीद करना वास्तविकता से थोड़ा दूर माना जा सकता है।
पहले लागू हुए वेतन आयोग में क्या हुआ था?
7वें वेतन आयोग (2015): कर्मचारी पक्ष ने न्यूनतम वेतन 26,000 रुपये की मांग की थी। लेकिन आयोग ने इसे 18,000 रुपये तक सीमित किया, जबकि फिटमेंट फैक्टर रखा गया 2.57
6ठा वेतन आयोग (2006): मांग थी 10,000 रुपये की बेसिक सैलरी, तय की गई 5,479 रुपये, जिसे बाद में 7,000 रुपये किया गया। हर बार कर्मचारियों की मांगें पूरी नहीं हुईं, लेकिन कुछ हद तक राहत ज़रूर दी गई।
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