केंद्रीय कर्मचारियों के लिए सरकार ने यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS) में आवेदन की आखिरी तारीख बढ़ाकर अब 30 सितंबर 2025 कर दी है। यह फैसला 1 अप्रैल से लागू हुई UPS स्कीम को लेकर आया है, जिसे वैकल्पिक रूप से NPS के स्थान पर चुना जा सकता है।
अब कर्मचारियों के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि वे NPS में ही बने रहें या UPS में स्विच करें? यह निर्णय उनकी रिटायरमेंट इनकम, टैक्स और सुरक्षा से जुड़ा है। आइए समझते हैं दोनों स्कीमों का पूरा गणित क्या हैं, ताकि कर्मचारियों को इसकी जानकारी हो सके।
क्या है UPS और NPS में फर्क?
पेंशन का प्रकार: UPS में फिक्स्ड और गारंटीड पेंशन मिलती है। जबकि NPS में पेंशन बाजार आधारित होती है और गारंटी नहीं होती।
कर्मचारी का योगदान: UPS में कर्मचारी को बेसिक सैलरी का 10% योगदान देना होता है। जबकि NPS में भी कर्मचारी का योगदान बेसिक का 10% होता है।
सरकार का योगदान: UPS में सरकार 18.5% योगदान देती है। जबकि NPS में सरकार का योगदान 14% होता है।
महंगाई सुरक्षा: UPS में पेंशन में महंगाई दर (DA) के अनुसार बढ़ोतरी होती है। जबकि NPS में महंगाई से सुरक्षा का कोई प्रावधान नहीं है।
न्यूनतम सेवा: UPS में 25 साल की सेवा के बाद गारंटीड पेंशन मिलती है। जबकि NPS में ऐसी कोई सेवा शर्त नहीं होती।
टैक्स लाभ: UPS में मिलने वाली पेंशन पर टैक्स लागू होता है। जबकि NPS में निवेश पर ₹2 लाख तक की टैक्स छूट मिलती है।
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