रैमजेट इंजन की तकनीक: दुनिया में सिर्फ 4 देशों के पास

नई दिल्ली। आज की दुनिया में जब रक्षा और एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी नए आयाम छू रही है, रैमजेट इंजन तकनीक एक ऐसे उन्नत क्षेत्र का प्रतीक बन गई है जिसे विकसित करना बेहद चुनौतीपूर्ण है। यह तकनीक वर्तमान में दुनिया के केवल चार देशों – अमेरिका, रूस, चीन और भारत – के पास है। यह न सिर्फ तकनीकी दक्षता का प्रतीक है, बल्कि रणनीतिक सैन्य शक्ति का संकेत भी है।

क्या है रैमजेट इंजन?

रैमजेट इंजन एक प्रकार का एयर-ब्रीदिंग जेट इंजन है जो बिना किसी घूमने वाले पार्ट (जैसे टर्बाइन) के काम करता है। यह इंजन अत्यधिक गति से हवा को अपने अंदर खींचता है, उसे संपीड़ित करता है, फिर उसमें ईंधन मिलाकर जलाता है और उच्च गति से पीछे की ओर निकालता है, जिससे जोर उत्पन्न होता है।

रैमजेट इंजन का इस्तेमाल

रैमजेट इंजन को आमतौर पर सुपरसोनिक मिसाइलों और हाइपरसोनिक वाहनों में इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि यह मैक 3 से ऊपर की गति पर अत्यधिक कुशल होता है। हालांकि, यह स्थिर या कम गति पर काम नहीं कर सकता, इसलिए इसे किसी अन्य प्रणोदन प्रणाली (जैसे रॉकेट बूस्टर) के साथ लॉन्च किया जाता है।

रैमजेट इंजन में भारत की उपलब्धि

भारत ने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के माध्यम से रैमजेट तकनीक में उल्लेखनीय प्रगति की है। भारत की सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल 'ब्रह्मोस' – जो भारत और रूस की संयुक्त परियोजना है – आंशिक रूप से रैमजेट इंजन पर आधारित है। अब भारत हाइपरसोनिक संस्करण ‘ब्रह्मोस-II’ और अपने स्वदेशी स्क्रैमजेट इंजन पर भी कार्य कर रहा है, जो रैमजेट का अगला स्तर है।

बाकी तीन देश जिनके पास रैमजेट इंजन

अमेरिका: X-51A Waverider जैसे हाइपरसोनिक प्रोजेक्ट्स में रैमजेट और स्क्रैमजेट तकनीक का प्रयोग कर रहा है।

रूस: 'Zircon' हाइपरसोनिक मिसाइल को रैमजेट इंजन से संचालित किया गया है, जो ध्वनि की गति से 9 गुना तेज चल सकती है।

चीन: DF-17 जैसी मिसाइलों और हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल्स में रैमजेट से संबंधित प्रणालियाँ विकसित कर चुका है।

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