मामले की पृष्ठभूमि
इस निर्णय की पृष्ठभूमि में मेरठ, आगरा, मुरादाबाद, अमरोहा सहित कई जिलों के 22 राशन दुकानदारों की याचिकाएं थीं, जिन्हें जिला आपूर्ति अधिकारियों द्वारा एफआईआर दर्ज होने के मात्र आधार पर बिना किसी सुनवाई या जांच के लाइसेंस से वंचित कर दिया गया था। इन सभी याचिकाओं की सुनवाई न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की एकल पीठ ने एक साथ करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की।
अदालत की टिप्पणियाँ
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि— केवल एफआईआर दर्ज होना किसी का दोष सिद्ध नहीं करता। लाइसेंस रद्द करने से पहले समुचित जांच और संबंधित पक्ष को सुनवाई का अवसर देना अनिवार्य है। एफआईआर के आधार पर की गई कार्रवाई न सिर्फ असंवैधानिक है, बल्कि यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन भी है।
याचिकाकर्ता की दलील
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता विशाल टंडन ने दलील दी कि एफआईआर दर्ज होने के बाद न तो कोई गवाह की जांच की गई और न ही किसी प्रकार की प्रारंभिक जांच की गई। इसके बावजूद जिला आपूर्ति अधिकारी ने दुकानदारों के लाइसेंस रद्द कर दिए, जो कि सरकार के 5 अगस्त 2019 के शासनादेश और पूर्व में दिए गए बजरंगी तिवारी बनाम राज्य सरकार के फैसले का उल्लंघन था।
कोर्ट का क्या है फैसला
कोर्ट ने सभी पहलुओं की जांच के बाद सरकार और जिला आपूर्ति अधिकारियों की कार्रवाई को अनुचित और कानून के विरुद्ध करार दिया। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि— “केवल एफआईआर दर्ज होना किसी भी प्रकार से प्रशासनिक दंडात्मक कार्रवाई का आधार नहीं बन सकता जब तक कि आरोपों की जांच नहीं हो जाती।” अंततः कोर्ट ने सभी आदेशों को रद्द करते हुए दुकानदारों के लाइसेंस तत्काल प्रभाव से बहाल करने का निर्देश दिया।
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