भारत को भी स्टील्थ बॉम्बर की जरूरत: चीन के पास मौजूद!

नई दिल्ली। भारत की सामरिक सुरक्षा नीति का आधार "परमाणु त्रायड" (Nuclear Triad) है, यानी भारत के पास ज़मीन, समुद्र और हवा — तीनों माध्यमों से परमाणु हमला करने की क्षमता है। जहां जमीनी माध्यम से अग्नि-V जैसी लंबी दूरी की मिसाइलें और समुद्री माध्यम से न्यूक्लियर-सबमरीन (SSBNs) देश की शक्ति को मजबूती देते हैं, वहीं हवाई माध्यम में भारत अभी भी एक महत्वपूर्ण खामी से जूझ रहा है — स्टील्थ बॉम्बर की अनुपस्थिति।

वर्तमान स्थिति:

भारतीय वायुसेना (IAF) के पास इस समय जगुआर, मिराज-2000 और Su-30 MKI जैसे एडवांस्ड लड़ाकू विमान हैं, जिन्हें परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम बनाया गया है। परंतु ये विमान स्टील्थ नहीं हैं — यानी इन्हें रडार पर आसानी से ट्रैक किया जा सकता है। आज के समय में जब चीन जैसे पड़ोसी देशों के पास S-400 और HQ-9 जैसे शक्तिशाली एयर डिफेंस सिस्टम हैं, तो इन विमानों के साथ परमाणु हमले की संभावना खतरनाक रूप से जोखिमपूर्ण हो जाती है।

स्टील्थ बॉम्बर की आवश्यकता क्यों?

1. हवाई परमाणु हमलों में विश्वसनीयता: स्टील्थ बॉम्बर की सबसे बड़ी खूबी है — उसकी अदृश्यता। ये विमान रडार की पकड़ में नहीं आते, जिससे वे दुश्मन के गहरे इलाके में घुसकर भी सुरक्षित तरीके से लक्ष्य पर हमला कर सकते हैं।

2. परमाणु त्रायड को संतुलित बनाना: भारत की सामरिक त्रायड में हवाई माध्यम सबसे कमजोर कड़ी है। स्टील्थ बॉम्बर के आने से यह त्रायड और भी विश्वसनीय और संतुलित बन सकती है।

3. चीन की बढ़ती शक्ति का जवाब: चीन के पास शीआन H-20 जैसे स्टील्थ बॉम्बर हैं, जो इंटरकॉन्टिनेंटल रेंज के साथ परमाणु और पारंपरिक हथियार ले जाने में सक्षम हैं। यह बॉम्बर अमेरिका के गुआम जैसे ठिकानों तक पहुंच सकता है। ऐसे में भारत के पास इसका कोई जवाब नहीं होना सामरिक असंतुलन को दर्शाता है।

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