चीन की सीमा पर F-35 लड़ाकू विमानों की तैनाती!

न्यूज डेस्क: जापान ने अपने रक्षा बलों की ताकत बढ़ाने के लिए एक अहम कदम उठाया है। जापान एयर सेल्फ डिफेंस फोर्स (JASDF) ने चीन से बढ़ते खतरे को देखते हुए अपने मुख्य द्वीप होन्शू में स्थित कोमात्सु एयर बेस पर अत्याधुनिक F-35 स्टील्थ फाइटर जेट्स की तैनाती का फैसला किया है। यह कदम जापान की उत्तरी तटरेखा पर सुरक्षा को और मजबूत करने के लिए उठाया गया है, और इसे जापान के पूर्वी सागर की सुरक्षा में अहम भूमिका निभाने की उम्मीद है।

रिपोर्ट के मुताबिक, जापान अब अमेरिकी F-35 विमानों की तैनाती के साथ-साथ वर्टिकल टेक-ऑफ और लैंडिंग (VTOL) क्षमता वाले F-35B लड़ाकू विमानों की तैनाती की दिशा में भी कदम बढ़ा रहा है। अगले कुछ महीनों में न्युटाबारू एयर बेस पर इन विमानों के प्रशिक्षण संचालन की शुरुआत हो जाएगी, जिसमें 2025 तक F-35B का पहला बैच जापान पहुंचेगा।

नई तैनाती और तकनीकी सुधार

जापान के रक्षा मंत्री जनरल नाकातानी ने बताया कि कोमात्सु एयर बेस पर F-35 विमानों की तैनाती से JASDF की ऑपरेशनल क्षमताएं बेहतर होंगी। "इस तैनाती से हम न केवल पूर्वी सागर के हवाई क्षेत्र का बेहतर उपयोग कर पाएंगे, बल्कि हमारे विमान की तत्परता भी सुनिश्चित होगी।" उन्होंने यह भी कहा कि यह तैनाती जापान के सागर के आस-पास के हवाई क्षेत्र में अभ्यास की सुविधा प्रदान करेगी, जो एक अत्यधिक रणनीतिक महत्व का क्षेत्र है।

इस फैसले से पहले, JASDF का F-35A बेड़ा केवल जापान के उत्तर में स्थित मिसावा एयर बेस तक ही सीमित था। लेकिन कोमात्सु एयर बेस पर नए विमानों की तैनाती से न केवल जापान की वायु रक्षा में सुधार होगा, बल्कि यह पूर्वी एशिया में बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों के मद्देनजर रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण साबित होगा।

सुरक्षा को और मजबूत करेगा F-35A विमानों का बेड़ा

JAPO (F-35 Joint Program Office) के अनुसार, जापान ने हाल ही में नए टेक्नोलॉजी रिफ्रेश-3 (TR-3) कन्फिगरेशन में अपने पहले तीन F-35A विमानों को कोमात्सु एयर बेस पर तैनात किया है। ये विमान 1 अप्रैल को कोमात्सु एयर बेस पहुंचे थे, जिसके बाद जापान के पास अब कुल 41 F-35A विमान हो गए हैं। यह तैनाती जापान के वायु रक्षा नेटवर्क को और सशक्त बनाएगी, जिससे देश की सुरक्षा को नई मजबूती मिलेगी।

चीन की बढ़ती सैन्य गतिविधियाँ और जापान का प्रतिकार

इस तैनाती का मुख्य उद्देश्य चीन की बढ़ती सैन्य गतिविधियों का मुकाबला करना है। विशेष रूप से दक्षिणी चीन सागर और ताइवान के आस-पास के क्षेत्रों में चीन द्वारा जारी सैन्य दबाव को देखते हुए जापान ने अपनी वायु रक्षा को और मजबूत करने की दिशा में यह कदम उठाया है। चीन की सीमा से नजदीक होने के कारण, जापान के लिए यह कदम अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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