भारत-रूस व्यापार 12 गुना बढ़ा, अमेरिका-चीन के उड़े होश

नई दिल्ली। भारत और रूस के बीच आर्थिक रिश्तों की कहानी दशकों पुरानी है, जो कभी रक्षा सहयोग पर केंद्रित थी, लेकिन अब ऊर्जा क्षेत्र की ओर निर्णायक रूप से मुड़ चुकी है। बीते कुछ वर्षों में इन संबंधों में न सिर्फ मजबूती आई है, बल्कि इसकी प्रकृति में भी गहरा बदलाव देखा गया है। विशेष रूप से 2015 से 2024 के बीच भारत-रूस व्यापार में जो परिवर्तन आया है, वह दोनों देशों की रणनीतिक प्राथमिकताओं और वैश्विक भू-राजनीतिक हालातों को दर्शाता है।

व्यापार में 12 गुना वृद्धि:

2015 में भारत और रूस के बीच कुल द्विपक्षीय व्यापार मात्र 6.1 अरब डॉलर था। लेकिन 2024 तक यह आंकड़ा 72 अरब डॉलर तक पहुंच गया है – यानी लगभग 12 गुना वृद्धि। यह उछाल इसलिए भी उल्लेखनीय है क्योंकि दोनों देशों ने 2015 में 30 अरब डॉलर के व्यापार का लक्ष्य रखा था, जिसे अब उन्होंने दोगुना से भी अधिक पार कर लिया है। इस जबरदस्त वृद्धि के पीछे सबसे बड़ा कारक कच्चे तेल का आयात है।

तेल ने बदली व्यापार की तस्वीर?

2024 में भारत का रूस से तेल आयात लगभग 55 अरब डॉलर तक पहुंच गया है, जो 2015 की तुलना में 500 गुना अधिक है। 2015 में जहां तेल का हिस्सा रूस से कुल आयात में मात्र 2.5% था, वहीं अब यह बढ़कर 83% हो गया है। इसके विपरीत, गैर-तेल उत्पादों के आयात में केवल मामूली वृद्धि देखी गई है।

निर्यात और व्यापार संतुलन की चुनौती?

जहाँ एक ओर भारत का रूस को निर्यात तीन गुना बढ़कर 4.8 अरब डॉलर हुआ है, वहीं आयात 15 गुना उछलकर 67.2 अरब डॉलर हो गया है। यह व्यापार असंतुलन दोनों देशों के लिए एक नीतिगत प्रश्न बन गया है, खासकर भारत के लिए, जिसे अब अपने निर्यात को विविधतापूर्ण और प्रतिस्पर्धी बनाना होगा।

रक्षा से ऊर्जा तक: संबंधों का रूपांतरण

भारत की रक्षा प्रणाली में अभी भी रूस की बड़ी भूमिका है। आज भी भारत के कुल रक्षा आयात का एक-तिहाई हिस्सा रूस से आता है और भारत के शस्त्रागार में लगभग 62% हथियार रूसी मूल के हैं। लेकिन अब व्यापार का केंद्र रक्षा के बजाय ऊर्जा बन गया है। यह बदलाव बताता है कि दोनों देशों के संबंध केवल सैन्य या रणनीतिक साझेदारी तक सीमित नहीं रहे, बल्कि आर्थिक और ऊर्जा सुरक्षा तक विस्तार पा चुके हैं।

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