FGFA प्रोजेक्ट की शुरुआत और उम्मीदें
भारत ने इस प्रोजेक्ट को अपनी वायु सेना की ताकत बढ़ाने के लिए एक रणनीतिक कदम माना। रूस के Su-57 लड़ाकू विमान के आधार पर विकसित होने वाला FGFA, भारत के लिए पाँचवीं पीढ़ी की तकनीक लेकर आना था। शुरुआत में भारत को उम्मीद थी कि इस साझेदारी से वह न केवल तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर होगा, बल्कि नए विमान के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भागीदार बनेगा।
आर्थिक और लागत संबंधी चुनौतियां
FGFA प्रोजेक्ट की सबसे बड़ी बाधा इसके भारी खर्च थे। रूस ने शुरुआती चार प्रोटोटाइप के लिए लगभग 6.7 बिलियन डॉलर की मांग की, जबकि पूरे प्रोजेक्ट की लागत 40 बिलियन डॉलर से अधिक आंकी गई थी। भारत के लिए इतनी भारी रकम निवेश करना एक बड़ा जोखिम था, खासकर जब परियोजना की डिलीवरी कई बार स्थगित होती रही।
तकनीकी साझेदारी में अनिश्चितता
सबसे बड़ी दिक्कत रही रूस का तकनीकी डेटा और डिज़ाइन शेयर करने में संकोच। भारत चाहता था कि HAL और DRDO जैसी स्थानीय संस्थाएं इस विमान के विकास में सक्रिय रूप से शामिल हों, लेकिन रूस ने इस मामले में पूरी तरह सहयोग नहीं किया। तकनीकी जानकारी के अभाव में भारत को अपने हिस्से की जिम्मेदारी पूरी करना मुश्किल लग रहा था।
देरी और प्रदर्शन संबंधी कमियां
FGFA की शुरुआती डिलीवरी 2018 में होनी थी, लेकिन यह कार्यकाल कई सालों तक टलता रहा और अब यह 2027-28 तक बढ़ चुका है। साथ ही, Su-57 के आधार पर विकसित FGFA ने भारतीय वायु सेना की कई तकनीकी आवश्यकताओं को पूरा नहीं किया। स्टील्थ क्षमता, रडार टेक्नोलॉजी, और हिमालयी और समुद्री इलाके में ऑपरेशन जैसी जरूरतों में यह विमान अपेक्षित प्रदर्शन नहीं दे पाया।
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