रूस-भारत FGFA समझौता? 5वीं पीढ़ी के विमान का सपना!

नई दिल्ली। भारत और रूस ने 2000 के दशक में मिलकर पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट विकसित करने का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट FGFA (Fifth Generation Fighter Aircraft) शुरू किया था। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य था एक अत्याधुनिक स्टील्थ विमान बनाना, जो भारतीय वायु सेना की जरूरतों को पूरा कर सके और चीन-पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों से बढ़ते खतरों का मुकाबला कर सके। लेकिन 2018 तक भारत ने FGFA से खुद को अलग कर लिया। आइए जानते हैं कि ऐसा क्यों हुआ।

FGFA प्रोजेक्ट की शुरुआत और उम्मीदें

भारत ने इस प्रोजेक्ट को अपनी वायु सेना की ताकत बढ़ाने के लिए एक रणनीतिक कदम माना। रूस के Su-57 लड़ाकू विमान के आधार पर विकसित होने वाला FGFA, भारत के लिए पाँचवीं पीढ़ी की तकनीक लेकर आना था। शुरुआत में भारत को उम्मीद थी कि इस साझेदारी से वह न केवल तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर होगा, बल्कि नए विमान के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भागीदार बनेगा।

आर्थिक और लागत संबंधी चुनौतियां

FGFA प्रोजेक्ट की सबसे बड़ी बाधा इसके भारी खर्च थे। रूस ने शुरुआती चार प्रोटोटाइप के लिए लगभग 6.7 बिलियन डॉलर की मांग की, जबकि पूरे प्रोजेक्ट की लागत 40 बिलियन डॉलर से अधिक आंकी गई थी। भारत के लिए इतनी भारी रकम निवेश करना एक बड़ा जोखिम था, खासकर जब परियोजना की डिलीवरी कई बार स्थगित होती रही।

तकनीकी साझेदारी में अनिश्चितता

सबसे बड़ी दिक्कत रही रूस का तकनीकी डेटा और डिज़ाइन शेयर करने में संकोच। भारत चाहता था कि HAL और DRDO जैसी स्थानीय संस्थाएं इस विमान के विकास में सक्रिय रूप से शामिल हों, लेकिन रूस ने इस मामले में पूरी तरह सहयोग नहीं किया। तकनीकी जानकारी के अभाव में भारत को अपने हिस्से की जिम्मेदारी पूरी करना मुश्किल लग रहा था।

देरी और प्रदर्शन संबंधी कमियां

FGFA की शुरुआती डिलीवरी 2018 में होनी थी, लेकिन यह कार्यकाल कई सालों तक टलता रहा और अब यह 2027-28 तक बढ़ चुका है। साथ ही, Su-57 के आधार पर विकसित FGFA ने भारतीय वायु सेना की कई तकनीकी आवश्यकताओं को पूरा नहीं किया। स्टील्थ क्षमता, रडार टेक्नोलॉजी, और हिमालयी और समुद्री इलाके में ऑपरेशन जैसी जरूरतों में यह विमान अपेक्षित प्रदर्शन नहीं दे पाया।

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