शिक्षा की नींव गांव से
गांव भारत की आत्मा हैं और जब बात शिक्षा की आती है, तो सुधार की शुरुआत भी गांवों से होनी चाहिए। यही सोचकर सरकार ने ग्राम प्रधानों और स्कूल प्रबंधन समितियों को सक्रिय भूमिका में ला खड़ा किया है। उनका मुख्य उद्देश्य होगा कि हर बच्चे का स्कूल में नामांकन हो और उसकी नियमित उपस्थिति सुनिश्चित की जाए।
सीधी मदद, सीधा असर
सरकार ने परिषदीय स्कूलों में पढ़ने वाले हर बच्चे के लिए ₹1,200 की आर्थिक सहायता सीधे उनके अभिभावकों के खाते में भेजने का निर्णय भी लिया है। यह राशि किताबों, यूनिफॉर्म और अन्य आवश्यकताओं के लिए दी जाएगी, ताकि कोई भी बच्चा सिर्फ संसाधनों की कमी की वजह से शिक्षा से वंचित न रहे।
छोटे स्कूल होंगे एकीकृत
एक और बड़ा फैसला यह लिया गया है कि जिन स्कूलों में छात्रों की संख्या 50 से कम है, उन्हें पास के बड़े स्कूलों से जोड़ा जाएगा। इसका उद्देश्य संसाधनों का बेहतर उपयोग करना है—चाहे वो शिक्षक हों, पुस्तकालय हों या स्मार्ट क्लास जैसे तकनीकी साधन। वहीं, जिन स्कूलों में 50 से अधिक छात्र हैं, उन्हें स्वतंत्र रूप से चलाया जाएगा, ताकि शिक्षा की गुणवत्ता बनी रहे।
शिक्षा की गुणवत्ता पर ज़ोर
मुख्यमंत्री का स्पष्ट कहना है कि सिर्फ स्कूल में दाखिला काफी नहीं है, बच्चों की उपस्थिति और पढ़ाई की गुणवत्ता भी सुनिश्चित होनी चाहिए। इसके लिए ग्राम प्रधानों से लेकर स्कूल के हर शिक्षक और अधिकारी तक को ज़िम्मेदारी निभानी होगी।
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