भारत ने पाक ही नहीं, चीन को भी किया धराशायी!
हालांकि यह ऑपरेशन सीधे तौर पर भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ, लेकिन इसके पीछे की असली कहानी कहीं अधिक गहरी और रणनीतिक है। पाकिस्तान की सेना लंबे समय से चीनी हथियारों और तकनीक पर निर्भर है। यही वजह है कि इस ऑपरेशन को चीन की सैन्य तकनीक और भारत की स्वदेशी प्रणाली के बीच एक अप्रत्यक्ष टकराव के रूप में भी देखा गया।
जॉन स्पेंसर, जो शहरी युद्ध रणनीति के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विशेषज्ञ हैं, ने इस ऑपरेशन को “तकनीकी परीक्षा” करार दिया है। उनका मानना है कि पाकिस्तान सिर्फ लड़ाई का मोर्चा नहीं था, बल्कि चीन के लिए एक "प्रयोगशाला" भी था – जहां वह अपनी हथियार प्रणालियों की क्षमता का मूल्यांकन करता है। ऐसे में भारत की विजय केवल एक क्षेत्रीय जीत नहीं रही, बल्कि चीन की तकनीकी श्रेष्ठता के दावे को भी चुनौती दी गई।
भविष्य की दिशा और रणनीतिक संदेश
"ऑपरेशन सिंदूर" ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत अब सिर्फ पारंपरिक सुरक्षा ढांचे पर निर्भर नहीं है। वह तकनीकी नवाचारों, स्वदेशी उत्पादन और रणनीतिक आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता देता है। इस ऑपरेशन का रणनीतिक संदेश साफ है—भारत अब न सिर्फ सीमा पर, बल्कि तकनीकी मोर्चे पर भी निर्णायक बढ़त लेने के लिए तैयार है। यह लड़ाई सिर्फ एक जवाबी कार्रवाई नहीं थी, यह एक संदेश था—चीन को, पाकिस्तान को, और पूरी दुनिया को। यह संदेश था भारत की नई सैन्य सोच का, जो तकनीक, सटीकता और आत्मनिर्भरता के त्रिकोण पर आधारित है।
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