सरकार को बड़ी सफलता, थोक महंगाई दर दो वर्षों में सबसे कम

नई दिल्ली। भारत की अर्थव्यवस्था के लिए जुलाई की शुरुआत सकारात्मक संकेत लेकर आई है। सरकार द्वारा जारी जून महीने के थोक मूल्य सूचकांक (WPI) के आंकड़ों के अनुसार, देश की थोक महंगाई दर -0.13 फीसदी दर्ज की गई है। यह बीते 20 महीनों का सबसे निचला स्तर है, जो यह दर्शाता है कि कीमतों पर नियंत्रण की दिशा में सरकार के प्रयास कारगर साबित हो रहे हैं।

महंगाई में गिरावट: किन चीज़ों ने निभाई बड़ी भूमिका

सरकार के मुताबिक थोक महंगाई दर में इस गिरावट का मुख्य कारण खाद्य पदार्थों, खनिज तेलों, कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस और मूल धातुओं जैसी वस्तुओं की कीमतों में आई कमी है। इन वस्तुओं की कीमतों में नरमी ने उत्पादन लागत को कम किया है, जिससे समग्र महंगाई पर दबाव घटा है। विशेष रूप से, थोक खाद्य महंगाई दर में तेज गिरावट देखी गई है। मई में यह 1.72 फीसदी थी, जो जून में गिरकर -0.26 फीसदी पर आ गई। वहीं, विनिर्मित वस्तुओं की महंगाई दर भी थोड़ी घटकर 1.97 फीसदी रही, जो मई में 2.04 फीसदी थी।

लगातार तीसरे महीने 1% से नीचे

यह लगातार तीसरा महीना है जब थोक महंगाई दर 1 प्रतिशत से नीचे रही है। यह एक स्थिर आर्थिक संकेतक है और दर्शाता है कि उत्पादन एवं वितरण के स्तर पर कीमतों में बड़ी उछाल नहीं हो रही। इससे उद्योगों को भी राहत मिली है, क्योंकि कम लागत से मुनाफा बढ़ाने की संभावना खुलती है।

WPI बनाम CPI: थोक महंगाई का दायरा क्या है?

थोक मूल्य सूचकांक (WPI) और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में अंतर समझना जरूरी है। WPI उन वस्तुओं की कीमतों में बदलाव को मापता है जिन्हें थोक में खरीदा-बेचा जाता है — जैसे कच्चा माल, पेट्रोलियम, धातुएं आदि। यह मूल रूप से फैक्ट्री गेट पर दर्ज कीमतों का प्रतिबिंब है। इसके विपरीत, CPI उपभोक्ताओं द्वारा खरीदी गई वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों को मापता है — जैसे राशन, किराया, कपड़े, शिक्षा आदि।

जनता को कब मिलेगी राहत?

भले ही थोक महंगाई दर में गिरावट आई हो, लेकिन इसका असर खुदरा स्तर पर कुछ समय बाद ही दिखता है। यानी उपभोक्ता बाजार में कीमतों में गिरावट आने में थोड़ा समय लग सकता है। हालांकि यह संकेत अवश्य है कि निकट भविष्य में आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में स्थिरता या नरमी आ सकती है।

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