वाइनरी ऑपरेटरों और किसानों को मिलेगा बढ़ावा
इस प्रस्ताव के पीछे मुख्य उद्देश्य राज्य में फलों से वाइन निर्माण को बढ़ावा देना और किसानों की आय में वृद्धि करना है। लखनऊ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर और नोएडा में स्थित चार वाइनरी ऑपरेटरों को इस फैसले से सीधा लाभ मिलने की उम्मीद है। साथ ही, इन क्षेत्रों में फलों की खेती करने वाले सैकड़ों किसान भी इस नई व्यवस्था से लाभान्वित होंगे।
उत्पाद शुल्क न होने से खुदरा विक्रेताओं में रुचि की कमी
राज्य सरकार द्वारा 'मेड इन यूपी' वाइन पर उत्पाद शुल्क नहीं लगाया गया है, जिससे खुदरा विक्रेताओं को इन उत्पादों को बेचने में कोई वित्तीय प्रोत्साहन नहीं मिल रहा है। आम तौर पर, देशी शराब, अंग्रेजी वाइन और बीयर की बिक्री से राज्य सरकार को भारी मात्रा में उत्पाद शुल्क प्राप्त होता है, जो खुदरा विक्रेताओं को एमजीक्यू (न्यूनतम गारंटी कोटा) पूरा करने में मदद करता है।
एमजीक्यू वह प्रणाली है जिसमें प्रत्येक खुदरा विक्रेता को आबकारी विभाग को एक निश्चित मासिक राजस्व सुनिश्चित करने के लिए शराब की न्यूनतम मात्रा खरीदनी होती है। लेकिन स्थानीय वाइन से कोई उत्पाद शुल्क उत्पन्न नहीं होने के कारण, ये विक्रेता एमजीक्यू हासिल नहीं कर पाते हैं, जिससे उनकी इसमें दिलचस्पी कम हो जाती है।
नीतिगत संशोधन की जरूरत, सरकार कर रही तैयारी
इस समस्या को हल करने के लिए, राज्य सरकार मौजूदा आबकारी नीति में संशोधन करने की योजना बना रही है। यदि स्थानीय वाइन को भी एमजीक्यू में शामिल कर दिया जाए या उसके लिए अलग से कोई न्यूनतम कोटा निर्धारित किया जाए, तो इससे न केवल वाइनरी ऑपरेटरों को बाजार मिलेगा, बल्कि किसानों की आमदनी में भी सीधा इजाफा होगा।
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