8वें वेतन आयोग: वेतन बढ़ोतरी का ये है मुख्य आधार

नई दिल्ली। भारत में केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के लिए हर वेतन आयोग एक नई उम्मीद लेकर आता है। अब जबकि 8वें वेतन आयोग की चर्चा शुरू हो चुकी है, सभी की निगाहें वेतन निर्धारण के मुख्य आधार—फिटमेंट फैक्टर (Fitment Factor)—पर टिकी हैं। 7वें वेतन आयोग में यह फैक्टर 2.57 था, जिससे न्यूनतम मूल वेतन 7,000 रुपये से सीधे 18,000 रुपये तक बढ़ गया था। यही उम्मीद 8वें वेतन आयोग से भी की जा रही है, लेकिन आर्थिक सीमाएं और सरकारी खजाने की स्थिति इस बार एक बड़ी चुनौती बन सकती है।

क्या होता है फिटमेंट फैक्टर?

फिटमेंट फैक्टर वह गुणांक (multiplier) है, जिसके आधार पर पुराने वेतन को नई संरचना में बदला जाता है। यह सरकारी वेतन ढांचे में वेतन वृद्धि का सीधा मापदंड है। उदाहरण के लिए, यदि किसी कर्मचारी का पुराना मूल वेतन 10,000 रुपये था और फिटमेंट फैक्टर 2.5 लागू होता है, तो नया वेतन ₹25,000 होगा।

8वें वेतन आयोग में संभावित फिटमेंट फैक्टर

विशेषज्ञों के अनुसार, 8वें वेतन आयोग में फिटमेंट फैक्टर को 2.5 से 2.86 के बीच रखने की संभावना है: अगर फिटमेंट फैक्टर 2.5 रखा गया तो न्यूनतम वेतन लगभग ₹35,000 के आस-पास हो सकता है। वहीं, अगर 2.7 के करीब रखा गया तो न्यूनतम वेतन ₹40,000 से ₹45,000 तक पहुंच सकता है। अगर 2.86 लागू हुआ (जो अधिकतम अनुमान है) तो न्यूनतम वेतन ₹51,000 के पार जा सकता है।

हालांकि, 2.86 जैसे उच्च फैक्टर को स्वीकार करना सरकार के लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि इससे वेतन व्यय में भारी इजाफा होगा और बजट पर बड़ा बोझ पड़ेगा। इसको लेकर जल्द ही सरकार के द्वारा पूरी डिटेल्स जारी की जाएगी। इसकी तैयारी की जा रही हैं।

क्यों महत्वपूर्ण है फिटमेंट फैक्टर?

वेतन में सीधी वृद्धि: यह तय करता है कि कर्मचारियों को कितनी वास्तविक बढ़ोतरी मिलेगी।

न्यायसंगत वेतन संरचना: यह सभी स्तरों पर कर्मचारियों के बीच संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।

महंगाई से राहत: बढ़ता महंगाई दर कर्मचारियों की क्रय शक्ति को प्रभावित करता है, जिसे यह फैक्टर संतुलित करता है।

सरकार के लिए चुनौती

सरकार के सामने दोहरी चुनौती है—एक ओर कर्मचारियों की उम्मीदें और दूसरी ओर आर्थिक प्रबंधन। 8वें वेतन आयोग को लागू करने के बाद यदि उच्च फिटमेंट फैक्टर स्वीकार किया जाता है, तो केंद्रीय बजट पर हजारों करोड़ का अतिरिक्त बोझ आ सकता है। ऐसे में सरकार को एक संतुलन साधने की जरूरत है, जहां कर्मचारी संतुष्ट हों और अर्थव्यवस्था पर अनावश्यक दबाव न पड़े।

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