निजीकरण का उद्देश्य: सुधार, न कि मुनाफाखोरी
ऊर्जा मंत्री ने कहा कि मौजूदा वितरण व्यवस्था में लाइन लॉस, बिलिंग में अनियमितता, बिजली चोरी, और ग्राहक सेवा में कई खामियां हैं। निजी कंपनियों के पास इन समस्याओं से निपटने के लिए बेहतर तकनीक और प्रबंधन कौशल मौजूद है, जिससे उपभोक्ताओं को अधिक विश्वसनीय और गुणवत्तापूर्ण सेवाएं मिल सकेंगी। उन्होंने कहा की वितरण प्रणाली को निजी हाथों में सौंपने का यह मतलब नहीं है कि बिजली उपभोक्ताओं पर आर्थिक बोझ डाला जाएगा। बिजली की दरें नियामक आयोग द्वारा तय की जाती हैं, और यही व्यवस्था निजी कंपनियों के आने के बाद भी जारी रहेगी।
दरें नहीं बढ़ेंगी: यूपीईआरसी ही करेगा नियंत्रण
बिजली दरों को लेकर उपभोक्ताओं में आम तौर पर यह आशंका रहती है कि निजीकरण के बाद दरें बढ़ जाएंगी। इस पर ऊर्जा मंत्री ने स्पष्ट किया कि उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग (UPERC) ही दरें तय करता है, और निजी कंपनियों को अपनी मर्जी से दरें तय करने या वसूलने का अधिकार नहीं होगा। चाहे वितरण व्यवस्था सरकारी हाथों में हो या निजी, दरें केवल नियामक की स्वीकृति के बाद ही लागू होंगी।
ग्रामीण उपभोक्ताओं के लिए राहत
ग्रामीण क्षेत्रों के उपभोक्ताओं के लिए ऊर्जा मंत्री ने भरोसा दिलाया कि निजीकरण के बावजूद उन्हें मिलने वाली सब्सिडी, सस्ती दरें और अन्य रियायतों में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। “ग्रामीण गरीबों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता यथावत रहेगी और निजीकरण का उद्देश्य वहां भी सेवा सुधार है, न कि लाभ के नाम पर बोझ डालना,” डॉ. शर्मा ने कहा।
तकनीकी सुधार और ग्राहक संतुष्टि
पूर्वांचल और दक्षिणांचल क्षेत्रों में वितरण व्यवस्था में तकनीकी और वाणिज्यिक हानियों की समस्या अधिक गंभीर है। इन क्षेत्रों में निजी कंपनियों के आने से वितरण नेटवर्क का आधुनिकीकरण होगा, लाइन लॉस में कमी आएगी और ग्राहक सेवा के स्तर में सुधार होगा। ऊर्जा मंत्री ने कहा कि इस प्रक्रिया को पूरी पारदर्शिता से अंजाम दिया जा रहा है और सभी हितधारकों की भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है।
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