भारत बना रहा 6वीं पीढ़ी का जेट इंजन: जानकर चौंक जाएंगे

नई दिल्ली। भारत अब सिर्फ तकनीकी उपभोक्ता नहीं, बल्कि तकनीकी निर्माता बनने की राह पर है। खासकर जब बात हो राष्ट्रीय सुरक्षा और वायु शक्ति की, तो यह बदलाव और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के अधीन काम करने वाली गैस टर्बाइन रिसर्च एस्टैब्लिशमेंट (GTRE) ने हाल ही में 6वीं पीढ़ी के फाइटर जेट इंजन के विकास की दिशा में एक बड़ी रणनीति बनाई है। यह पहल न केवल भारतीय वायुसेना की ताकत को एक नई ऊंचाई पर ले जाएगी, बल्कि देश को रक्षा क्षेत्र में एक वैश्विक लीडर बनने की ओर भी अग्रसर करेगी।

5वीं पीढ़ी की मंज़िल पार, अब 6वीं की तैयारी

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत अब 5वीं पीढ़ी के फाइटर जेट इंजन को पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से विकसित करने में सक्षम हो चुका है। यह वही स्तर है, जहां कभी केवल अमेरिका, रूस, फ्रांस या यूके जैसे देशों का वर्चस्व हुआ करता था। हालांकि, फिलहाल वायुसेना ने इस वर्ग के इंजन की कोई औपचारिक मांग नहीं की है, क्योंकि तेजस Mark 1A और MkII जैसे विमानों के लिए GE के F404 और F414 इंजन पहले से तय हैं।

इस स्थिति को देखते हुए, GTRE ने अपनी अगली रणनीति पर फोकस किया है: 6वीं पीढ़ी के फाइटर जेट इंजन का विकास, विशेष रूप से भारत के महत्वाकांक्षी AMCA (Advanced Medium Combat Aircraft) कार्यक्रम को ध्यान में रखकर।

छठी पीढ़ी के इंजन की तकनीकी खासियतें

1. डायनामिक परफॉर्मेंस अडजस्टमेंट: यह इंजन उड़ान के हर चरण — टेक-ऑफ, क्रूज, डॉगफाइट — में अपनी क्षमता को वातावरण और मिशन की जरूरतों के अनुसार बदल सकेंगे। इससे न केवल बेहतर ईंधन दक्षता मिलेगी, बल्कि विमानों को लंबी दूरी तक बिना टंकी भरवाए उड़ने की ताकत भी मिलेगी।

2. बेहतर थ्रस्ट-टू-वेट अनुपात: इसका मतलब यह है कि नया इंजन अपने वजन के मुकाबले अधिक जोर (थ्रस्ट) पैदा करेगा, जिससे विमान अधिक तेजी से उड़ सकेगा, ऊंचाई हासिल कर सकेगा और युद्ध की स्थितियों में ज्यादा लचीलापन दिखा सकेगा।

3. स्टील्थ-सक्षम इंजन डिज़ाइन: 6वीं पीढ़ी के इंजन की सबसे खास बात होगी – इन्फ्रारेड सिग्नेचर में कमी। यानी इंजन से निकलने वाली गर्मी को इस तरह नियंत्रित किया जाएगा कि दुश्मन के थर्मल सेंसर इन्हें पकड़ न सकें। यह तकनीक लड़ाकू विमान की स्टील्थ क्षमता को बढ़ाएगी।

4. एडवांस कूलिंग और हाई-टेम्परेचर मटीरियल्स: GTRE फिलहाल उन मैटेरियल्स पर रिसर्च कर रहा है, जो अत्यधिक तापमान में भी टिकाऊ रह सकें। इसके साथ-साथ, अत्याधुनिक कूलिंग सिस्टम्स को विकसित किया जा रहा है, जिससे इंजन लंबे समय तक अपनी उच्च कार्यक्षमता बनाए रख सके।

सह-विकास और वैश्विक साझेदारी

GTRE की योजना है कि यह इंजन एक सह-विकास मॉडल के तहत विकसित किया जाए, जिससे भारत को उन विदेशी तकनीकों तक भी पहुंच मिलेगी जो अब तक प्रतिबंधित या सीमित रही हैं। इससे न केवल तकनीकी ज्ञान का हस्तांतरण होगा, बल्कि भारत को इंजन के उत्पादन और निर्यात में भी प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिलेगी।

आत्मनिर्भरता की उड़ान

6वीं पीढ़ी के इंजन का विकास न केवल तकनीकी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत के आत्मनिर्भर भारत (Aatmanirbhar Bharat) मिशन के लिए भी एक बड़ा मील का पत्थर साबित होगा। यदि भविष्य में भारतीय वायुसेना को विदेशी इंजनों की जगह स्वदेशी विकल्पों की जरूरत पड़े, तो GTRE के पास न केवल तकनीकी आधार होगा, बल्कि तेज़ी से समाधान देने की क्षमता भी।

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