‘सीक्रेट वेपन’: परमाणु पनडुब्बी सिर्फ 6 देशों के पास, भारत भी शामिल

नई दिल्ली। दुनिया में सैन्य ताकत का पैमाना अब सिर्फ टैंकों और मिसाइलों से नहीं मापा जाता, बल्कि महासागरों की गहराइयों में छिपी ताक़त—परमाणु पनडुब्बियों—से भी तय होता है। हैरानी की बात यह है कि आज तक केवल 6 देश ही ऐसी पनडुब्बियाँ बनाने और चलाने की क्षमता रखते हैं, और गर्व की बात यह है कि भारत भी इस विशेष क्लब का हिस्सा है।

परमाणु पनडुब्बियाँ (Nuclear Submarines) न सिर्फ एक देश की समुद्री शक्ति को कई गुना बढ़ा देती हैं, बल्कि यह रणनीतिक तौर पर भी दुश्मनों के लिए एक 'अनदेखा खतरा' होती हैं। पारंपरिक डीज़ल पनडुब्बियों के मुकाबले ये पनडुब्बियाँ महीनों तक बिना सतह पर आए समुद्र में रह सकती हैं और परमाणु मिसाइल दागने में भी सक्षम होती हैं।

कौन हैं वो 6 देश?

अमेरिका – सबसे बड़ा और तकनीकी रूप से सबसे एडवांस्ड परमाणु पनडुब्बी बेड़ा।

रूस – शीत युद्ध के दौर से परमाणु पनडुब्बियों का अग्रणी निर्माता।

चीन – हाल के वर्षों में तेजी से परमाणु पनडुब्बी क्षमताएं बढ़ाई हैं।

ब्रिटेन – ट्राइडेंट मिसाइलों से लैस परमाणु पनडुब्बियों का संचालन करता है।

फ्रांस – स्वतंत्र परमाणु नीति के तहत खुद की पनडुब्बियाँ बनाता और तैनात करता है।

भारत – 2016 में 'INS Arihant' की तैनाती के साथ इस क्लब में शामिल हुआ।

भारत की बड़ी छलांग

भारत की पहली स्वदेशी परमाणु पनडुब्बी INS Arihant  ने 2016 में अपना ऑपरेशनल डिप्लॉयमेंट पूरा किया। इसके साथ ही भारत ने "न्यूक्लियर ट्रायड" – यानी ज़मीन, आकाश और समुद्र से परमाणु हमले की क्षमता – हासिल कर ली। इसके बाद INS Arighat जैसी अगली पीढ़ी की पनडुब्बियाँ भी भारत के पास हैं।

क्यों हैं ये ‘सीक्रेट वेपन’?

परमाणु पनडुब्बियाँ दुश्मन की नजरों से छिपकर हजारों किलोमीटर दूर से भी हमला करने में सक्षम होती हैं। ये समुद्र की गहराई में रहकर किसी भी समय प्रतिक्रिया देने का विकल्प देती हैं, जो इन्हें रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण बनाता है। यही कारण है कि इनके मूवमेंट और लोकेशन अक्सर 'टॉप सीक्रेट' रहती है।

0 comments:

Post a Comment