B-2 बॉम्बर: अब इतिहास बनने की ओर
B-2 स्पिरिट बॉम्बर, जिसे "फ्लाइंग विंग" के नाम से भी जाना जाता है, 1989 में पहली बार उड़ान भरी थी और 1997 में आधिकारिक रूप से अमेरिकी वायुसेना में शामिल हुआ। इसकी सबसे बड़ी खासियत थी इसका स्टील्थ (रडार से बचने की क्षमता) डिजाइन, जिससे यह दुश्मन की नजरों से छिपकर किसी भी लक्ष्य पर परमाणु या पारंपरिक हमला कर सकता था। हालांकि इसकी कीमत और रखरखाव में आने वाली कठिनाइयों के कारण इसे सीमित संख्या में ही बनाया गया — केवल 21 यूनिट।
अब 'B-21 रेडर' लेगा मोर्चा
B-21 रेडर, जिसे नॉर्थ्रॉप ग्रुम्मन कंपनी ने विकसित किया है, B-2 की तुलना में कहीं अधिक उन्नत और तकनीकी रूप से बेहतर है। इसे अमेरिकी वायुसेना के "लॉन्ग रेंज स्ट्राइक बॉम्बर" कार्यक्रम के तहत विकसित किया गया है। इसकी पहली झलक दिसंबर 2022 में सामने आई थी, और इसे अगले कुछ वर्षों में पूरी तरह से सेवा में लाया जाएगा।
B-21 को "नेक्स्ट जेनरेशन स्टील्थ बॉम्बर" कहा जा रहा है, क्योंकि यह न केवल रडार से बच निकलने की क्षमता रखता है, बल्कि साइबर सुरक्षा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और नेटवर्क आधारित युद्ध के लिहाज से भी अत्याधुनिक है। इसमें क्रू के साथ-साथ बिना पायलट के भी उड़ान भरने की क्षमता होने की बात कही जा रही है।
रणनीतिक महत्व
B-21 रेडर की एंट्री अमेरिका को भविष्य के संभावित युद्धों के लिए तैयार करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। इसके जरिए अमेरिका अपनी रणनीतिक क्षमता को न केवल एशिया-प्रशांत क्षेत्र में बल्कि पूरी दुनिया में और मजबूत करेगा। यह चीन और रूस जैसे देशों के खिलाफ अमेरिका की “डिटरेंस” (निरोधक शक्ति) को और मजबूती देगा।
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