भारत, फ्रांस से क्यों मांग रहा है राफेल का सोर्स कोड?

नई दिल्ली।  भारत ने फ्रांस से खरीदे गए राफेल लड़ाकू विमानों को लेकर अब एक बड़ा रणनीतिक और तकनीकी कदम उठाया है। भारतीय रक्षा मंत्रालय ने फ्रांस सरकार और डसॉल्ट एविएशन से राफेल का सोर्स कोड मांगा है, ताकि देश अपनी स्वदेशी रक्षा प्रणालियों को विमानों में एकीकृत कर सके। लेकिन फ्रांस और डसॉल्ट ने इस मांग को लेकर अनिच्छा जाहिर की है, जिससे दोनों देशों के रक्षा संबंधों में एक नई जटिलता उभरती दिखाई दे रही है।

क्या है सोर्स कोड, और भारत क्यों कर रहा है इसकी मांग?

सोर्स कोड किसी भी उन्नत सैन्य प्रणाली का सबसे संवेदनशील तकनीकी हिस्सा होता है। यह उस सॉफ्टवेयर का मूल कोड है जो विमान की इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली, हथियार प्रबंधन, सेंसर, एवियोनिक्स और अन्य क्रिटिकल फंक्शंस को नियंत्रित करता है।

भारत का उद्देश्य है कि वह राफेल विमानों में स्वदेशी हथियार, जैसे अस्त्र, ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम, सेंसर्स या रडार, तथा अन्य भारतीय इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम को एकीकृत कर सके। इसके लिए सोर्स कोड तक पहुंच जरूरी है, क्योंकि यह बाहरी तकनीक को मूल सिस्टम में जोड़ने का एकमात्र रास्ता है।

डसॉल्ट एविएशन ने जताई आपत्ति

राफेल बनाने वाली कंपनी डसॉल्ट एविएशन ने भारत की इस मांग को बौद्धिक संपदा (IPR) का हवाला देते हुए खारिज कर दिया है। कंपनी का कहना है कि सोर्स कोड साझा करना उनकी टेक्नोलॉजी और बिजनेस सिक्योरिटी को खतरे में डाल सकता है। डसॉल्ट का यह रुख भारत को परेशान कर रहा है, क्योंकि इससे भारत को अपने रक्षा ढांचे में लचीलापन और आत्मनिर्भरता हासिल करने में बाधा आ सकती है।

क्या है भारत की रणनीति?

भारत अब इस मुद्दे पर राजनयिक और रक्षा स्तर पर चर्चा को आगे बढ़ा रहा है। इसके अलावा, रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत इस स्थिति को देखते हुए अब फ्यूचर फाइटर जेट डील्स में "सोर्स कोड एक्सेस" को शर्त के रूप में शामिल कर सकता है। वहीं, भारत भविष्य में पूरी तरह स्वदेशी फाइटर जेट प्रोजेक्ट्स, जैसे AMCA (Advanced Medium Combat Aircraft) और तेजस Mk-2 पर भी ज़ोर दे रहा है, ताकि विदेशी तकनीक पर निर्भरता कम की जा सके।

क्या यह संबंधों में खटास लाएगा?

भारत और फ्रांस के बीच रक्षा सहयोग कई दशकों से मजबूत रहा है, लेकिन इस तकनीकी मांग को लेकर अंतरराष्ट्रीय रक्षा सौदों में बौद्धिक संपदा अधिकारों की सीमा एक बार फिर चर्चा में आ गई है। यदि यह मुद्दा लंबा खिंचता है, तो यह भारत की भविष्य की खरीद नीतियों और फ्रांस के साथ रणनीतिक रिश्तों को प्रभावित कर सकता है।

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