सरपंच को मिलते हैं ये तीन बड़े अधिकार
1. ग्रामसभा और ग्राम कचहरी की बैठक बुलाने व अध्यक्षता करने का अधिकार
बिहार में सरपंच को यह अधिकार प्राप्त है कि वे ग्रामसभा और ग्राम कचहरी की बैठकों को बुला सकते हैं और उनकी अध्यक्षता कर सकते हैं। यह अधिकार उन्हें गांव के न्यायिक और सामाजिक मामलों में सक्रिय हस्तक्षेप और मार्गदर्शन देने की ताकत देता है। बैठक में विवादों को सुलझाने, मामलों की सुनवाई करने और आपसी समझौते कराने की प्रक्रिया की निगरानी सरपंच करते हैं।
2. कार्यकारी और वित्तीय शक्तियां
सरपंच केवल न्यायिक भूमिका में ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक और आर्थिक मामलों में भी सशक्त होते हैं। उन्हें ग्राम पंचायत के कार्यकारी प्रशासन पर नियंत्रण का अधिकार होता है। इसके अंतर्गत वे पंचायत के द्वारा किए जाने वाले विकास कार्यों की निगरानी कर सकते हैं, योजनाओं की समीक्षा कर सकते हैं और किसी भी प्रकार की गड़बड़ी की रिपोर्ट जिला प्रशासन को भेज सकते हैं।
3. पंचायत कर्मचारियों पर प्रशासनिक नियंत्रण
ग्राम पंचायत में कार्यरत सचिव, लेखपाल, तकनीकी सहायक, और अन्य कर्मचारियों के कार्यों की प्रशासकीय निगरानी और नियंत्रण सरपंच के पास होता है। यदि कोई कर्मचारी लापरवाही करता है या भ्रष्टाचार में लिप्त होता है तो सरपंच उसकी शिकायत उच्च अधिकारियों तक पहुंचा सकते हैं और अनुशासनात्मक कार्रवाई की अनुशंसा कर सकते हैं।
सरपंच: गांव की ‘लोक अदालत’ के मुख्य न्यायाधीश
बिहार की ग्राम कचहरी व्यवस्था के तहत सरपंच को छोटे आपराधिक मामलों और नागरिक विवादों को निपटाने का अधिकार है। इनमें झगड़ा, गाली-गलौज, ज़मीन का सीमाविवाद, घरेलू झगड़े जैसे मामले शामिल होते हैं। सरपंच अपने पैनल (पंचों) के साथ मिलकर ऐसे मामलों की सुनवाई करते हैं और बिना किसी वकील या जटिल प्रक्रिया के, त्वरित न्याय देने का प्रयास करते हैं।
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