यूपी पंचायत चुनाव में आरक्षण को लेकर बड़ा अपडेट

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में प्रस्तावित त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर तैयारियाँ तेज़ हो चुकी हैं और इस बार चुनाव प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण पहलू सामने आया है—ओबीसी आरक्षण का निर्धारण 'ट्रिपल टेस्ट' के आधार पर किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप, राज्य सरकार ने इस संबंध में एक डेडिकेटेड राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन की तैयारी शुरू कर दी है, जो ओबीसी आरक्षण की प्रक्रिया को वैधानिक और पारदर्शी बनाएगा।

क्या है 'ट्रिपल टेस्ट'?

सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 'ट्रिपल टेस्ट' एक ऐसी प्रक्रिया है जो ओबीसी आरक्षण को कानूनी मानकों के अनुरूप सुनिश्चित करती है। इसमें तीन मुख्य चरण शामिल होते हैं:

1 .पिछड़ेपन की प्रकृति का अनुभवजन्य (empirical) अध्ययन:

इसके लिए एक आयोग गठित किया जाता है, जो निकायों में सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन का अध्ययन करता है।

2 .ओबीसी की वास्तविक संख्या और प्रतिनिधित्व का मूल्यांकन:

आयोग की रिपोर्ट के आधार पर यह परीक्षण होता है कि किस हद तक ओबीसी की जनसंख्या और सामाजिक स्थिति आरक्षण की मांग को उचित ठहराती है।

3 .आरक्षण की सीमा:

यह सुनिश्चित किया जाता है कि एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों की कुल संख्या 50% से अधिक न हो, ताकि संविधान के अनुच्छेद 15(4) और 16(4) के तहत संतुलन बना रहे।

ओबीसी आरक्षण को लेकर सतर्क सरकार

साल 2023 के नगर निकाय चुनावों में जब परंपरागत फार्मूले के आधार पर ओबीसी आरक्षण तय किया गया था, तब हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। बाद में राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के अनुसार आयोग बनाकर दोबारा प्रक्रिया शुरू करनी पड़ी थी। इस बार पंचायत चुनाव में सरकार ऐसी स्थिति से बचने के लिए पहले से सतर्क है और राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन करने जा रही है।

परिसीमन और आरक्षण की प्रक्रिया

पंचायती राज विभाग ने पंचायतों के पुनर्गठन और परिसीमन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसके बाद पंचायतों में आरक्षण का निर्धारण रोटेशन और ट्रिपल टेस्ट के आधार पर किया जाएगा। अनुसूचित जाति (SC) और जनजाति (ST) आरक्षण 2011 की जनगणना के आधार पर होगा, जबकि ओबीसी आरक्षण आयोग द्वारा कराए जाने वाले सर्वे और विश्लेषण पर आधारित होगा।

राजनीतिक और सामाजिक असर

पंचायत चुनावों में ओबीसी आरक्षण हमेशा से एक संवेदनशील और राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण विषय रहा है। राज्य के कई हिस्सों में स्थानीय नेताओं और समूहों की निगाहें इस पर टिकी होती हैं कि किस पंचायत को आरक्षित किया जाएगा। 'ट्रिपल टेस्ट' प्रक्रिया से यह उम्मीद की जा रही है कि यह व्यवस्था पारदर्शी, निष्पक्ष और कानूनी रूप से सुदृढ़ होगी। इसके चलते किसी भी वर्ग को आरक्षण से वंचित न किया जाए और किसी अन्य को अनुचित लाभ न मिले।

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